भाद्रपद अमावस्या – Bhadrapada Amavasya
स्नान, दान और तर्पण के लिये अमावस्या की तिथि का बहुत अधिक महत्व माना जाता है लेकिन सोमवार के दिन पड़ने वाली अमावस्या तो और भी सौभाग्यशाली मानी जाती है। जिस अमावस्या तिथि पर सूर्य ग्रहण होता है उसका भी स्नानादि के लिये विशेष महत्व हो जाता है। लेकिन जब ये तीनों सारे संयोग एक साथ अमावस्या तिथि को हो जायें तो वह बहुत ही पुण्य फलदायी मानी जाती है। इस संयोग में पितरों की आत्मा शांति से लेकर कुंडली में कालसर्प जैसे दोष का निवारण करने के लिये यह बहुत उपयुक्त तिथि हो जाती है। भगवान श्री कृष्ण की आराधना के माह भाद्रपद की अमावस्या को इस बार यह सारे संयोग बन रहे हैं।
भाद्रपद अमावस्या का महत्व
प्रत्येक मास की अमावस्या तिथि का अपना विशेष महत्व होता है। भाद्रपद माह की अमावस्या की भी अपनी खासियत हैं। इस माह की अमावस्या पर धार्मिक कार्यों के लिये कुश एकत्रित की जा सकती है। मान्यता है कि धार्मिक कार्यों, श्राद्ध कर्म आदि में इस्तेमाल की जाने वाली घास यदि इस दिन एकत्रित की जाये तो वह वर्षभर तक पुण्य फलदायी होती है। यदि भाद्रपद अमावस्या सोमवार के दिन हो तो इस कुश का प्रयोग 12 सालों तक किया जा सकता है। कुश एकत्रित करने के कारण ही इसे कुशग्रहणी अमावस्या कहा जाता है। पौराणिक ग्रंथों में इसे कुशोत्पाटिनी अमावस्या भी कहा गया है। शास्त्रों में दस प्रकार की कुशों का उल्लेख मिलता है –
कुशा:काशा यवा दूर्वा उशीराच्छ सकुन्दका:।
गोधूमा ब्राह्मयो मौन्जा दश दर्भा: सबल्वजा:।।
मान्यता है कि घास के इन दस प्रकारों में जो भी घास सुलभ एकत्रित की जा सकती हो इस दिन कर लेनी चाहिये। लेकिन ध्यान रखना चाहिये कि घास को केवल हाथ से ही एकत्रित कना चाहिये और उसकी पत्तियां पूरी की पूरी होनी चाहिये आगे का भाग टूटा हुआ न हो। इस कर्म के लिये सूर्योदय का समय उचित रहता है। उत्तर दिशा की ओर मुख कर बैठना चाहिये और मंत्रोच्चारण करते हुए दाहिने हाथ से एक बार में ही कुश को निकालना चाहिये। इस दौरान निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण किया जाता है-
विरंचिना सहोत्पन्न परमेष्ठिन्निसर्गज।
नुद सर्वाणि पापानि दर्भ स्वस्तिकरो भव।।
पिथौरा अमावस्या
भाद्रपद अमावस्या को पिथौरा अमावस्या भी कहा जाता है, इसलिए इस दिन देवी दुर्गा की पूजा की जाती है। इस संदर्भ में पौराणिक मान्यता है कि इस दिन माता पार्वती ने इंद्राणी को इस व्रत का महत्व बताया था। विवाहित स्त्रियों द्वारा संतान प्राप्ति एवं अपनी संतान के कुशल मंगल के लिये उपवास किया जाता है और देवी दुर्गा की पूजा की जाती है।
कुश एकत्रित करने के लिहाज से ही भादों मास की अमावस्या का महत्व नहीं है बल्कि इस दिन को पिथौरा अमावस्या भी कहा जाता है। पिथौरा अमावस्या को देवी दुर्गा की पूजा की जाती है। इस बारे में पौराणिक मान्यता भी है कि इस दिन माता पार्वती ने इंद्राणी को इस व्रत का महत्व बताया था। विवाहित स्त्रियों द्वारा संतान प्राप्ति एवं अपनी संतान के कुशल मंगल के लिये उपवास किया जाता है और देवी दुर्गा सहित सप्तमातृका व 64 अन्य देवियों की पूजा की जाती है।
भाद्रपद्र अमावस्या व्रत और धार्मिक कर्म
स्नान, दान और तर्पण के लिए अमावस्या की तिथि का अधिक महत्व होता है। यदि अमावस्या सोमवार के दिन पड़ जाये और इस दिन सूर्य ग्रहण भी हो तो इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। भाद्रपद अमावस्या के दिन किये जाने वाले धार्मिक कार्य इस प्रकार हैं-
● इस दिन प्रातःकाल उठकर किसी नदी, जलाशय या कुंड में स्नान करें और सूर्य देव को अर्घ्य देने के बाद बहते जल में तिल प्रवाहित करें।
● नदी के तट पर पितरों की आत्म शांति के लिए पिंडदान करें और किसी गरीब व्यक्ति या ब्राह्मण को दान-दक्षिणा दें।
● इस दिन कालसर्प दोष निवारण के लिए पूजा-अर्चना भी की जा सकती है।
● अमावस्या के दिन शाम को पीपल के पेड़ के नीचे सरसो के तेल का दीपक लगाएं और अपने पितरों को स्मरण करें। पीपल की सात परिक्रमा लगाएं।
● अमावस्या शनिदेव का दिन भी माना जाता है। इसलिए इस दिन उनकी पूजा करना जरूरी है।
2022 में भाद्रपद अमावस्या कब है?
27 अगस्त, 2022 (शनिवार)
भाद्रपद अमावस्या मुहूर्त
- अगस्त 26, 2022 को 12:26:09 से अमावस्या आरम्भ
- अगस्त 27, 2022 को 13:48:43 पर अमावस्या समाप्त