भगवान् श्रीकृष्ण | विट्ठल | गोपाल
कृष्ण को ईश्वर मानना अनुचित है, किंतु इस धरती पर उनसे बड़ा कोई ईश्वर तुल्य नहीं है, इसीलिए उन्हें पूर्ण अवतार कहा गया है। कृष्ण ही गुरु और सखा हैं। कृष्ण ही भगवान है अन्य कोई भगवान नहीं। कृष्ण हैं राजनीति, धर्म, दर्शन और योग का पूर्ण वक्तव्य। कृष्ण को जानना और उन्हीं की भक्ति करना ही हिंदुत्व का भक्ति मार्ग है। अन्य की भक्ति सिर्फ भ्रम, भटकाव और निर्णयहीनता के मार्ग पर ले जाती है। भजगोविंदम मूढ़मते।
कृष्ण जन्म : पुराणों अनुसार आठवें अवतार के रूप में विष्णु ने यह अवतार आठवें मनु वैवस्वत के मन्वंतर के अट्ठाईसवें द्वापर में श्रीकृष्ण के रूप में देवकी के गर्भ से मथुरा के कारागर में जन्म लिया था। उनका जन्म भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की रात्रि के सात मुहूर्त निकल गए और आठवाँ उपस्थित हुआ तभी आधी रात के समय सबसे शुभ लग्न उपस्थित हुआ। उस लग्न पर केवल शुभ ग्रहों की दृष्टि थी। रोहिणी नक्षत्र तथा अष्टमी तिथि के संयोग से जयंती नामक योग में लगभग 3112 ईसा पूर्व (अर्थात आज से 5121 वर्ष पूर्व) को हुआ हुआ। ज्योतिषियों अनुसार रात 12 बजे उस वक्त शून्य काल था।
कृष्ण पर शोध : हाल ही में ब्रिटेन में रहने वाले शोधकर्ता ने खगोलीय घटनाओं, पुरातात्विक तथ्यों आदि के आधार पर कृष्ण जन्म और महाभारत युद्ध के समय का सटिक वर्णन किया है। ब्रिटेन में कार्यरत न्यूक्लियर मेडिसिन के फिजिशियन डॉ. मनीष पंडित ने महाभारत में वर्णित 150 खगोलिय घटनाओं के संदर्भ में कहा कि महाभारत का युद्ध 22 नवंबर 3067 ईसा पूर्व को हुआ था। उस वक्त भगवान कृष्ण 55-56 वर्ष के थे।
उन्होंने अपनी खोज के लिए टेनेसी के मेम्फिन यूनिवर्सिटी में फिजिक्स के प्रोफेसर डॉ. नरहरि अचर द्वारा 2004-05 में किए गए शोध का हवाला भी दिया। इसके संदर्भ में उन्होंने पुरातात्विक तथ्यों को भी शामिल किया। जैसे कि लुप्त हो चुकी सरस्वती नदी के सबूत, पानी में डूबी द्वारका और वहाँ मिले कृष्ण-बलराम के की छवियों वाले पुरातात्विक सिक्के और मोहरे, ग्रीक राजा हेलिडोरस द्वारा कृष्ण को सम्मान देने के पुरातात्विक सबूत आदि।
कृष्ण जीवन : श्रीकृष्ण का जीवन, जैसा कि महाभारत में वर्णित है वही इतिहास सिद्ध है बाकी सभी विस्तार, अलंकार और श्रृंगार की बातें हैं। वेदों के गोपी, गोपिका और रास का गलत अर्थ निकाले जाने के कारण भागवत और ब्रह्मवैवर्त सहित अन्य पुराणों में उनके जीवन चरित्र को श्रृंगारिक रूप दिया गया है। श्रीकृष्ण ऐतिहासिक पुरुष हुए हैं, जो अपने कर्मों से मनुष्य से भगवान या महामानव हो गए न कि ईश्वर। न वे सृष्टि रचयिता हैं और न ही सृष्टिपालक। वे तो महामानव हैं।
श्रीकृष्ण शिक्षा-दीक्षा : योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण ने वेद और योग की शिक्षा और दीक्षा उज्जैन स्थित महर्षि सांदिपनी के आश्रम में रह कर हासिल की थी। वह योग में पारगत थे तथा योग द्वारा जो भी सिद्धियाँ होती है वह स्वत: ही उन्हें प्राप्य थी। सिद्धियों से पार भी जगत है वह उस जगत की चर्चा गीता में करते हैं। गीता मानती है कि चमत्कार धर्म नहीं है। स्थितप्रज्ञ हो जाना ही धर्म है।
महाभारत के कृष्ण
श्रीकृष्ण का जीवन, जैसा कि महाभारत में वर्णित है वही इतिहास सिद्ध है बाकी सभी विस्तार, अलंकार और श्रृंगार की बातें हैं।
कृष्ण लीलाएँ : कृष्ण के जीवन में बहुत रोचकता और उथल-पुथल रही है। बाल्यकाल में वे दुनिया के सर्वाधिक नटखट बालक रहे, तो किशोर अवस्था में गोपियों के साथ पनघट पर नृत्य करना और बाँसुरी बजाना उनके जीवन का सबसे रोचक प्रसंग है। कुछ और बड़े हुए तो मथुरा में कंस का वध कर प्रजा को अत्याचारी राजा कंस से मुक्त करने के उपरांत कृष्ण ने अपने माता-पिता को भी कारागार से मुक्त कराया। इसके अलावा कृष्ण ने पूतना, शकटासुर, यमलार्जुन मोक्ष, कलिय-दमन, धेनुक, प्रलंब, अरिष्ट आदि राक्षसों का संहार किया था। श्रीकृष्ण ही ऐसे थे जो इस पृथ्वी पर सोलह कलाओं से पूर्ण होकर अवतरित हुए थे। और उनमें सभी तरह की शक्तियाँ थी।
कृष्ण पत्नी और प्रेमिका : कृष्ण को चाहने वाली अनेकों गोपियाँ और प्रेमिकाएँ थी। कृष्ण-भक्त कवियों ने अपने काव्य में गोपी-कृष्ण की रासलीला को प्रमुख स्थान दिया है। पुराणों में गोपी-कृष्ण के प्रेम संबंधों को आध्यात्मिक और अति श्रांगारिक रूप दिया गया है। महाभारत में यह आध्यात्मिक रूप नहीं मिलता।
रुक्मिणी, सत्यभामा, जाम्बवती आदि कृष्णकी विवाहिता पत्नियाँ हैं। राधा, ललिता आदि उनकी प्रेमिकाएँ थी। उक्त सभी को सखियाँ भी कहा जाता है। राधा की कुछ सखियाँ भी कृष्ण से प्रेम करती थी जिनके नाम निम्न है:- चित्रा, सुदेवी, ललिता, विशाखा, चम्पकलता, तुंगविद्या, इन्दुलेखा, रग्डदेवी और सुदेवी हैं। ब्रह्मवैवर्त्त पुराण अनुसार कृष्ण की कुछ ही प्रेमिकाएँ थी जिनके नाम इस तरह है:- चन्द्रावली, श्यामा, शैव्या, पद्या, राधा, ललिता, विशाखा तथा भद्रा।
कर्म योगी कृष्ण : गीता में कर्म योग का बहुत महत्व है। गीता में कर्म बंधन से मुक्ति के साधन बताएँ हैं। कर्मों से मुक्ति नहीं, कर्मों के जो बंधन है उससे मुक्ति। कर्म बंधन अर्थात हम जो भी कर्म करते हैं उससे जो शरीर और मन पर प्रभाव पड़ता है उस प्रभाव के बंधन से मुक्ति आवश्यक है।
कृष्ण ने जो भी कार्य किया उसे अपना कर्म समझा, अपने कार्य की सिद्धि के लिए उन्होंने साम-दाम-दंड-भेद सभी का उपयोग किया, क्योंकि वे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पूर्ण जीते थे और पूरी जिम्मेदारी के साथ उसका पालन करते थे। न अतीत में और न भविष्य में, जहाँ हैं वहीं पूरी सघनता से जीना ही उनका उद्देश्य रहा।
कृष्ण निवास : गोकुल, वृंदावन और द्वारिका में कृष्ण ने अपने जीवन के कई महत्वपूर्ण क्षण गुजारे। पूरे भारतवर्ष में कृष्ण अनेकों स्थान पर गए। वे जहाँ-जहाँ भी गए उक्त स्थान से जुड़ी उनकी गाथाएँ प्रचलित है लेकिन मथुरा उनकी जन्मभूमि होने के कारण हिंदू धर्म का प्रमुख तीर्थ स्थल है।
महाभारत का युद्ध : कौरवों और पांडवों के बीच हस्तिनापुर की गद्दी के लिए कुरुक्षेत्र में विश्व का प्रथम विश्वयुद्ध हुआ था। कुरुक्षेत्र हरियाणा प्रान्त का एक जिला है। मान्यता है कि यहीं भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था।
कृष्ण इस युद्ध में पांडवों के साथ थे। आर्यभट्ट के अनुसार महाभारत युद्ध 3137 ई.पू. में हुआ। नवीनतम शोधानुसार यह युद्ध 3067 ई. पूर्व हुआ था। इस युद्ध के 35 वर्ष पश्चात भगवान कृष्ण ने देह छोड़ दी थी। तभी से कलियुग का आरम्भ माना जाता है।
गीता प्रवचन : कृष्ण ने महाभारत युद्ध के दौरान महाराजा पांडु एवं रानी कुंती के तीसरे पुत्र अर्जुन को जो उपदेश दिया वह गीता के नाम से प्रसिद्ध हुआ। वेदों का सार है उपनिषद और उपनिषदों के सार को गीता कहा गया है। ऋषि वेदव्यास महाभारत ग्रंथ के रचयिता थे। गीता महाभारत के भीष्मपर्व का हिस्सा है।
स्वयं भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा है कि युद्ध क्षेत्र में जो ज्ञान मैंने तुझे दिया था उस वक्त मैं योगयुक्त था। अत: उस अवस्था में परमात्मा की बात कहते हुए, वह परमात्मा के प्रतिनिधि बनते हुए परमात्मा के लिए मैं, मेरा, मुझे इत्यादि शब्दों का प्रयोग करते हैं इससे यह आशय नहीं कि वे खुद परमात्मा हैं या उनमें किसी प्रकार का अहंकार है।
द्वारिका निर्माण : कंस वध के बाद श्रीकृष्ण ने गुजरात के समुद्र के तट पर द्वारिका का निर्माण कराया और वहाँ एक नए राज्य की स्थापना की। कालांतर में यह नगरी समुद्र में डूब गई, जिसके कुछ अवशेष अभी हाल में ही खोजे गए हैं। आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित शारदापीठ भी यहीं पर स्थित है। हिंदुओं को चार धामों में से एक द्वारिका धाम को द्वारिकापुरी मोक्ष तीर्थ कहा जाता है। स्कंदपुराण में श्रीद्वारिका महात्म्य का वर्णन मिलता है।