हमारे प्राचीन धर्म ग्रंथों के अनुसार हम मनुष्यों की आयु लगभग 100 वर्ष या उससे अधिक मानी गयी है लेकिन वर्तमान समय में हमारे रहन सहन, विचारों, कर्मों के कारण हमारी आयु में लगातार कमी आती जा रही है। हम अपनी आयु को बढ़ाने, निरोगी रहने के तमाम प्रयत्न भी करते है लेकिन ज्यादातर लोगो को इसमें असफलता ही हाथ लगती है ।
इसका प्रमुख कारण हमारे द्वारा रोज किए जाने वाले कुछ ऐसे कार्य हैं, जो शास्त्रों में बिलकुल निषेध है। महाभारत के अनुशासव पर्व में मनुष्य की आयु को घटाने व बढ़ाने वाले हमारे कर्मों के बारे में पूरे विस्तार से बताया गया है।ये महत्वपूर्ण बातें भीष्म पितामाह जी ने युधिष्ठिर जी को बताई थी।
भीष्म पितामह के अनुसार जो व्यक्ति धर्म को नहीं मानते है नास्तिक है, कोई भी कार्य नहीं करते है, अपने गुरु और शास्त्र की आज्ञा का पालन नहीं करते है, व्यसनी, दुराचारी होते है उन मनुष्यों की आयु स्वत: कम हो जाती है। जो मनुष्य दूसरे जाति या धर्म की स्त्रियों से संसर्ग करते हैं, उनकी भी मृत्यु जल्दी होती है।
जो मनुष्य व्यर्थ में ही तिनके तोड़ता है, अपने नाखूनों को चबाता है तथा हमेशा गन्दा रहता है, उसकी भी जल्दी मृत्यु हो जाती है। जो व्यक्ति उदय, अस्त, ग्रहण एवं दिन के समय सूर्य की ओर अनावश्यक देखते है उनकी मृत्यु भी कम आयु में ही हो जाती है।यह बहुत ही छोटी छोटी बातें है जिनका हमें अवश्य ही ध्यान रखना चाहिए ।
शास्त्रों के अनुसार हम सभी मनुष्यों को मंजन करना,नित्य क्रिया से निवृत होना, अपने बालों को संवारना, और देवताओं कि पूजा अर्चना ये सभी कार्य दिन के पहले पहर में ही अवश्य कर लेने चाहिए। जो मनुष्य सूर्योदय होने तक सोता है तथा ऐसा करने पर प्रायश्चित भी नहीं करता है,जो ये समस्त कार्य अपने निर्धारित समय पर नहीं करते, जो पक्षियों से हिंसा करते है वे भी शीघ्र ही काल के ग्रास बन सकते हैं।
शौच के समय अपने मल-मूत्र की ओर देखने वाले, अपने पैर पर पैर रखने वाले, माह कि दोनों ही पक्षों की चतुर्दशी,अष्टमी,अमावस्या व पूर्णिमा के दिन स्त्री से संसर्ग करने वाले व्यक्तियों कि अल्पायु होती है।अत: हमें इनसे अवश्य ही बचना चाहिए ।
सदैव ध्यान दें कि भूसा, कोई भी भस्म, किसी के भी बाल और मुर्दे की हड्डियों,खोपड़ी पर कभीभी न बैठें। दूसरे के नहाने में उपयोग किये हुए जल का कभी भी किसी भी रूप में प्रयोग न करें। भोजन सदैव बैठकर ही करे। जहाँ तक सम्भव हो खड़े होकर पेशाब न करें। किसी भी ,राख तथा गोशाला में भी मल, मूत्र-त्याग न करें। भीगे पैर भोजन तो करें लेकिए भीगे पैर सोए नहीं। उक्त सभी बातों का ध्यान में रखने वाला वाला मनुष्य सौ वर्षों तक जीवन धारण करता है।
जो मनुष्य सूर्य, अग्नि, गाय तथा ब्राह्णों की ओर मुंह करके और बीच रास्ते में मूत्र त्याग करते हैं, उन सब की आयु कम हो जाती है। मैले, टूटे और गन्दे दर्पण में मुंह देखने वाला, गर्भवती स्त्री के साथ सम्बन्ध बनाने वाला,उत्तर और पश्चिम की ओर सर करके सोने वाला, टूटी, ढीली और गन्दी खाट / पलंग पर सोने वाला, किसी कोने ,अंधेरे में पड़े पलंग, चारपाई पर सोने वाला मनुष्य कि आयु अवश्य ही कम हो जाती है।
अपवित्र अवस्था में सूर्य, चंद्रमा और नक्षत्र की ओर देखने वाला, बड़े बुजुर्गो के आने पर खड़े होकर उनको प्रणाम नहीं करने वाला, उनका आदर सत्कार न करने वाला , घर में टूटे फूटे बर्तनों का उपयोग करने वाला, मात्र एक ही वस्त्र पहनकर भोजन करने वाला, नंगे बदन तथा अपवित्र अवस्था में ही सोने वाला मनुष्य भी अल्पायु होता है।
सिर पर तेल लगाने के बाद उसी हाथ से बचा हुआ तेल शरीर के दूसरे अंगों पर नहीं लगाना चाहिए। जूठे मुंह, जूठे हाथों से पढ़ने -पढ़ाने से भी आयु का नाश होता है। बोए हुए खेत में, आबादी के पास तथा पानी में मल-मूत्र करने वाला, सामने परोसे हुए अन्न की निंदा करने वाला, भोजन से पूर्व हाथ मुँह न धोने वाला और भोजन करते समय बात करने वाले मनुष्य की आयु भी कम होती है। लंबी आयु चाहने वाले मनुष्यों को जूठन भी घर से दूर ही फेंकना चाहिए।
शास्त्रों के अनुसार पूर्व या उत्तर की ओर मुंह करके ही हजामत बनवाना चाहिए। हजामत बनवाकर बिना नहाए रहने से भी आयु का नाश होता है।
व्यक्ति को किसी से ईष्र्या नहीं करना चाहिए। ईष्र्या करने से भी आयु का अवश्य ही नाश होता है। बिना बुलाए कहीं भी नहीं जाना चाहिए किंतु पूजा/यज्ञ देखने के लिए बिना निमंत्रण के भी चला जाना चाहिए है। जहां व्यक्ति का आदर न होता हो, अपमान हो वहां जाने से भी आयु का नाश होता है। निषिद्ध समय में कभी अध्ययन नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से भी ज्ञान व आयु का नाश हो जाता है।
शास्त्रों के अनुसार गुरु के साथ कभी भी जिद नहीं करनी चाहिए। यदि गुरु नाराज़ हों तो भी उन्हें हर तरह से सम्मान देकर उन्हें मनाकर प्रसन्न करने की चेष्ठा अवश्य ही करनी चाहिए।
गुरु जैसा भी बर्ताव करते हों तो भी उनके प्रति सदैव अच्छा ही बर्ताव करना चाहिए। क्योंकि गुरु की निंदा से मनुष्यों की आयु कम हो जाती है| इसी तरह महात्माओं की निंदा करने से भी मनुष्य की आयु कम होती है।
जो मनुष्य अपने पर्वों/त्योहारों के दिन ब्रह्मचर्य का पालन नहीं करता है , किसी भी व्यक्ति के साथ एक ही बर्तन में भोजन करता है, जो ऐसा अन्न खाता है तथा जिसमें से सार निकाल लिया गया हो, भोजन के बाद बाल संवारता है उसकी भी उम्र अधिक नहीं होती है।
जो मनुष्य यदि शाम के समय सोता है, पढ़ता है या भोजन करता है। रात के समय श्राद्ध करता है, नहाता है व दही या सत्तू खाता है, रात के समय खूब डंटकर भोजन करता है, ऐसा मनुष्य भी अधिक उम्र तक जीवित नहीं रहता है।
शास्त्रों के अनुसार जो कन्या किसी अंग से हीन हो अथवा अधिक अंग वाली हो, जिसका गोत्र अपने ही समान हो या जो नाना के कुल में ही उत्पन्न हुई हो, उसके साथ विवाह नहीं करना चाहिए। इसके अतिरिक्त, जो नीच कुल में पैदा हुई हो, जिसके कुल का पता न हो जिसके शरीर का रंग पीला हो तथा जो कुष्ठ रोग वाली हो, उसके साथ विवाह करने से मनुष्य की आयु अवश्य ही कम होती है।
जो मनुष्य अपवित्र मनुष्यों को देखता स्पर्श करता या उनके साथ रहता है, जो बहुत कामी होता है जो वासना में अंधा होकर कुमारी कन्या, चरित्रहीन स्त्री या वेश्या से सम्बन्ध बनाता है, जो पत्नी के साथ दिन में कभी भी तथा रजस्वला अवस्था में समागम करता है, उसे भी अवश्य ही अल्प आयु प्राप्त होती है।
जो मनुष्य भोजन करने के बाद हाथ-मुंह धोए बिना अपवित्र रहता है, और ऐसी अवस्था में ही अग्नि, गाय तथा ब्राह्मण का स्पर्श करता है ऐसे व्यक्ति को यमदूत शीघ्र ही ले जाते हैं।
- पलंग पर सदैव सीधा ही सोना चाहिए कभी भी तिरछा नहीं सोना चाहिए।
- नास्तिक मनुष्यों के साथ कभी भी संगत नही करनी चाहिए।
- आसन को कभी भी पैर से खींचकर नहीं बैठना चाहिए।
- स्नान किए बिना मनुष्य को चंदन नहीं लगाना चाहिए।
- बार-बार अपने मस्तक पर पानी नहीं डालना चाहिए।
- जो भी मनुष्य जाने अनजाने ये काम करता है, उसकी आयु भी अवश्य ही कम होती हैं।
दीर्घ आयु के उपाय
दिन में उत्तर दिशा की ओर मुंह करके मल-मूत्र का त्याग करने और रात में दक्षिणामुख होकर करने से आयु का नाश नहीं होता। दातून, मंजन किए बिना देवताओं की पूजा कदापि भी नहीं करनी चाहिए। नदी तालाब में नंगा होकर अथवा रात के समय नहाने से यथा संभव बचना चाहिए।
नास्तिक मनुष्यों कि संगत से दूर रहने में ही भलाई है । नहाने के बाद गन्दे ,गीले वस्त्र कभी भी नहीं पहनना चाहिए। रजस्वला स्त्री के साथ कभी भी सम्बन्ध स्थापित नहीं करना चाहियें। उपरोक्त बातों का ध्यान रखने वाला मनुष्य 100 वर्षों तक आयु का सुख भोगता है।
क्रोधहीन, सत्य बोलने वाले, प्राणियों से हिंसा न करने वाला, सभी को एक समान रूप से देखने वाला तथा छल कपट से दूर रहने वाले मनुष्य की आयु 100 वर्षों की होती है।प्रतिदिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर फिर नित्यकर्म – स्नान आदि करने के बाद प्रात:काल की संध्या व शाम के समय भी विधिपूर्वक संध्या करने वाले मनुष्य भी दीर्घ आयु को प्राप्त होते है।
कभी भी दूसरों के पहने हुए वस्त्र व जूते नहीं पहनने चाहिए। दूसरों की निंदा व चुगली बिलुक भी नहीं करनी चाहिए। किसी से भी क्रूरता का व्यवहार नही करना चाहिए। असहाय, अपंग व कुरूप की कदापि हंसी नहीं उड़ानी चाहिए।
ब्राह्मण, गाय, राजा, स्त्री, दुर्बल, वृद्ध, गर्भिणी और बोझ लिए हुए मनुष्य यदि सामने आ जाएं तो उन्हें मार्ग देने के लिए स्वयं पीछे हट जाना चाहिए। इन बातों का ध्यान रखने वाले मनुष्य को अल्पायु नहीं होती है ।
अधिक उम्र चाहने वाले मनुष्य को पीपल, बड़ और गूलर के फल का तथा सन के साग का सेवन कभी भी नहीं करना चाहिए। हाथ में नमक लेकर नहीं चाटना चाहिए इससे बुद्धि, धन और आयु का नाश होता है। रात को चावल, दही, मूली और सत्तू नहीं खाना चाहिए।
सुबह और शाम के समय ही सावधानी के साथ भोजन करना चाहिए, बीच में कुछ भी अनावश्यक खाना उचित नहीं है शत्रु के श्राद्ध में कभी भूलकर भी अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए।उपरोक्त निर्देशों का पालन करने वाला सौ वर्ष की आयु प्राप्त करता है।
बूढ़े-बुजुर्गो , परिवार के सदस्य और गरीब मित्र को अपने घर में अवश्य ही आश्रय देना चाहिए। परेवा, तोता और मैना आदि पक्षियों को घर में रहना बहुत ही मंगलकारी होता है। लेकिन यदि उल्लू, गिद्ध और जंगली कपोत घर में आ जाए तो तुरंत उसकी शांति करवानी चाहिए क्योंकि ये अमंगलकारी माने गए हैं।