सामवेद के उपनिषद
छान्दोग्योपनिषद
यह अत्यंत प्राचीन उपनिषद है। तलवकार शाखा के छान्दोग्य ब्रह्मण के अंतिम ८ अध्याय इस उपनिषद के रूप में प्रसिद्द है। यह विशालकाय प्राचीन गद्यात्मक उपनिषद है। इसमें सामविद्या का निरूपण है। साम और उद्नीथ की महत्ता का वर्णन करते हुए सामगान में कुशल आचार्यों की कथाएं दी गयी है। साम के भेदों, ॐ की उत्पत्ति, सूर्य की उपासना तथा आत्म विषयक चिंतन का निरूपण है। तत्वमसि का प्रसिद्ध उपदेश दिया गया है। इस पर शांकर भाष्य उपलब्ध है।
केनोपनिषद
जैमिनीय शाखा से सम्बद्ध यह उपनिषद चार खण्डों में विभक्त है। यह उपनिषद चार प्रश्नों को उपस्थित कर उनका समाधान प्रस्तुत करता है। ये प्रश्न मन, प्राण, वाणी, चक्षु तथा श्रोत्र व्यापर से सम्बद्ध है। इस उपनिषद पर शांकर भाष्य उपलब्ध है।
मैत्रायणी उपनिषद
यह मैत्रायणी शाखा से सम्बद्ध है। इसे सर्वाधिक अर्वाचीन उपनिषद माना जाता है। इसमें ७ प्रपाठक है। सांख्य सिद्धांत योग के ६ अंग इस उपनिषद में निर्दिष्ट है। प्रकृति के ३ गुणों का उद्भव ब्रह्मा, विष्णु एवं रूद्र से बताया गया है।
महानारायणी उपनिषद
तैत्तिरीय आरण्यक का दशम प्रपाठक ही महानारायणी उपनिषद के नाम से प्रसिद्द है। इसमें नारायण को परमतत्त्व के रूप में परिभाषित किया गया है।
आरुणकोपनिषद • दर्शनोपनिषद • जाबालदर्शनोपनिषद • जाबालि उपनिषद • महात्संन्यासोपनिषद •अव्यक्तोपनिषद • रुद्राक्षजाबालोपनिषद • सावित्र्युपनिषद • संन्यासोपनिषद • वज्रसूचिकोपनिषद • वासुदेवोपनिषद • चूड़ामणि उपनिषद • कुण्डिकोपनिषद • जाबाल्युपनिषद • महोपनिषद • मैत्रेय्युग्पनिषद • योगचूडाण्युपनिषद