अथर्ववेदोपनिषद – अर्थवेद के उपनिषद
प्रश्नोपनिषद –
यह अथर्ववेद की पैप्पलाद शाखा से सम्बद्ध उपनिषद है। यह उपनिषद ६ ऋषि महर्षि पिप्पलाद से अध्यात्म-विषयक प्रश्न पूछते हैं। उपनिषद में महर्षि पिप्पलाद उन प्रश्नों का उत्तर देते हैं। इन प्रश्नों के कारण ही इसे प्रश्नोपनिषद कहा जाता है। इसमें सृष्टि की उत्पत्त, उसके धारण, प्राण की उत्पत्ति, आत्मा की जागृत, स्वप्न एवं सुषुप्ति अवस्थाओं का वर्णन प्राप्त होता है।
मंडकोपनिषद –
यह अथर्वेद की शौनक शाखा से संबंधित उपनिषद है। इसे ३ मुण्डकों में विभक्त किया गया है, प्रत्येक मुण्डक में २-२ खंड है। इसमें ब्रह्मा द्वारा अपने ज्येष्ठ पुत्र अथर्वा को दिए गए आध्यात्म शास्त्र के उपदेश का वर्णन है।
इस उपनिषद में अक्षर विद्या विस्तार से वर्णित है। साथ ही परा-अपरा विद्या एवं ब्रह्म के व्यक्त रूपों का भी सम्यक विवेचन प्राप्त होता है। द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया इस सुप्रसिद्ध मन्त्र में द्वैतवाद का निर्देश प्राप्त होता है।
माण्डूक्योपनिषद-
अथर्ववेद से सम्बद्ध यह लघुकाय उपनिषद है। इसमें मात्र १२ गद्यात्मक मन्त्र या वाक्य है जिनमे आत्मा की चतुर्विध अवस्था, ओकार की महत्ता का समुचित विवेचन है। तीनो काल और त्रिकालातीत सब कुछ ही है। इसउपनिषद पर गौडपाद ने मांडूक्यकारिका नामक ग्रन्थ लिखा वस्तुतः इस उपनिषद में अद्वैत वेदांत संबंधी तत्त्व का विवेचन प्राप्त होता है।
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