बिल्वपत्र का महत्त्व क्यों ?
शिवपुराण आदि विभिन्न ग्रंथों में शिव पूजा करते समय बिल्वपत्र आवश्यक बतलाया गया है। पुराणों में कहा गया है कि एक बिल्व वृक्ष लगाने से मनुष्य की सात-पीढ़ियां नर्क-भोग से मुक्त हो जाती है। कहा जाता है कि बिल्व वृक्ष लगाने वाले मनुष्य को कोई भी गृह-पीडा़ नही सताती हैं इस संदर्भ में कहा गया है-
दर्शनं बिल्व वुक्षस्य स्पर्शनं पापनाशनम्। अघोर पाप संहारं एक बिल्वं शिवार्पणम्।
अर्थात् बिल्व वृक्ष का दर्शन एवं स्पर्श करने से मात्र पाप नष्ट होे जाते हैं। फिर बिल्व लगाने का कितना महत्व होेगां। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में एक बिल्ब वृक्ष लगाएं या एक करोडं की स्वर्ण मुद्राएं दान करे। दोनों का फल बराबर होगा। जो पुरूष अखण्ड़ बिल्वपत्रों द्वारा एक बार भी भगवान शिव का पूजन करता हैं, वह समस्त पापों छूटकर शिवधाम को प्राप्त होता है।
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इसी प्रकार जो स्त्री-पुरूष भक्ति और श्रद्धापूर्वक सदाशिव का बिल्वप़त्रों द्वारा पूजन करते है, वे इस लोक में ऐश्वर्यवान होकर अंत में शिवलोक में गमन करते हैं। यदि घर में बिल्ववृक्ष लगा दिया जाए, तो वास्तुदोष समाप्त हो जाता हैं।
एक बार भगवान ने कहा कि हे नारद! जो पुरूष सूखे हुए तथा एक या दो दिन पूर्व के रखे बिल्वपत्रों से भी मेरा पूजन करता है, वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है। बिल्व वृक्ष का आश्रय लेकर जो व्यक्ति कनधारा स्तोत्र का एक हजार पाठ करता है, लक्ष्मी उसकी दासी हो जाती हैं। उसे पुरश्चरण का फल प्राप्त हो जाता हैं।
बिल्वप़त्रों द्वारा श्रीशिव का पूजन करना सर्वकामनाओं का प्रदाता तथा संपूर्ण दरिद्रताओं का विनाशक है। बिल्वपत्र से बढ़कर महादेव को प्रसन्न करने वाली दरिद्रताओं का विनाशक हैं। बिल्वपत्र से बढ़कर महदेव को प्रसन्न करने वाली अन्य कोई वस्तु नहीं हैं। भगवान शिव को आक, धतूरा, भांग, बिल्वपत्र आदि अत्यंत प्रिय है। किंतु इनमें भी बिल्वपत्र सर्वाधिक प्रिय है।
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बिल्वपत्र को सदैव उल्टा करके अर्पण करना चाहिए अर्थात पत्ते का चिकना भाग शिवलिंग के ऊपर रहे। महाशिवरात्री एवं श्रावण मास में अधिकाधिक बिल्वपत्र शिवलिंग पर चढा़ए। यदि संभव हो तो बिल्वपत्र पर चंदन या अष्टगंध से ‘‘ ऊँ नमः शिवाय’’ लिखकर शिवलिंग पर अर्पित करेे।