जाने लाल किताब अनुसार पूर्वजन्म के ऋण और उनके उपाय

जाने लाल किताब अनुसार पूर्वजन्म के ऋण और उनके उपाय

अपने पूर्वजों के लिए पापों का फल जब उनकी वंशावली में से किसी एक जातक को भोगना पडे़, तो वह पितृ ऋण कहलाता है। पितृ ऋण अर्थात् पितरों (पूर्वजों) का ऋण । पिता ऋण लेता है, पुत्र चुकाता है। यही परम्परा है। लाल किताब ने इसे ज्योतिष से जोड दिया है, अर्थात् पिता गलती करता है, पु़त्र फल भोगता है। महाराज दशरथ ने श्रवण को तीर मार दिया। श्रवण के माता-पिता ने शाप दे दिया,‘‘जैसे हम पुत्र वियोग मे मर रहें हैं, वैसे आप भी पुत्र वियोग मे मरेंगें।’’

महाराज दशरथ पुत्र वियोग में मरे। उनका अपना दोष था, लेकिन श्री राम का तो कोई दोष नही था। उन्हें वन कें कष्ट सहने पडें पिता के कारण। सहस्त्रों वर्षों के पश्चात् इस प्रशन का उत्तर लाल किताब के लेखक ने दिया है-‘‘इसलिए कि आपकों जो फल मिलने वाला है, वह केवल आपके कर्मों का फल ही नही होगा। आपकों अपने पूर्वजों के कर्मो के फल भी भोगने हैं। यह ध्रुव सत्य है कि पूर्वजों के दुष्कर्मों का फल उनके वंशजों को भी भोगना पडता है। यही पितृ ऋण है।

अब प्रशन उठता है कि पितृ ऋण का पता कैसे लगे ? जातक कैसे जाने की अमुक अनिष्ट पितृ-ऋण के कारण है ? यह किस पूर्वज के पाप या शाप के कारण है और पितृ-ऋण-जन्य अनिष्ट के निवारण का उपाय क्या है ? लाल किताब में उपरोक्त प्रश्न पर विस्तार से विचार किया गया है।

पितृ ऋण की खास पहचान यह है कि इसकें अनिष्ट घर परिवार के सब लोगों को प्रभावित करतें है। सब को नही तो अधिकांश को तो करते ही है। परिवार के एक व्यक्ति की कुण्डली में जो ग्रह पीडित होते हैं, वही अन्य व्यक्तियों की कुण्डलियों में भी पीडित होतें हैं। लाल किताब के अनुसार जिस ग्रह के अपने घर में या कारकत्त्व वालें घर में शुक्र ग्रह बैठा हों, वह ग्रह पीडित माना गया है। पीडित ग्रह जिन रिश्तेंदारों के कारक होते हैं उन्ही रिश्तेदारों के पाप या शाप से पितृ ऋण दोष होता है।

अब यह देखते हैं कि यह अभिशाप या पाप किस पूर्वज का है? लाल किताब में बृहस्पति ग्रह पिता का कारक माना गया है और चन्द्र ग्रह माता का कारक है। यही दोनों ग्रह पीडित हैं। इसका अर्थ यह हुआ है कि इस परिवार पर पहली कुण्डली वाले के माता-पिता का शाप ही चला आ रहा है।

यह पितृ ऋण इस नियम के अनुसार हुआ कि जिस ग्रह के अपने घर में या कारकत्त्व वाले घर में उसका शत्रु ग्रह बैठा हो वह ग्रह पीडित होता है। लाल किताब में पितृ ऋण के कुछ अन्य योग भी दिये गये हैं, जो इस प्रकार हैं-

नौवाँ घर  और बुध से पितृ ऋण 

  1. लग्न या आठवें घर मे बुध और नौवें घर में बृहस्पति हो।
  2. दूसरे या सातवें घर में बुध और नौंवें घर में शुक्र हो।
  3. तीसरे घर में बुध और नौवें घर में राहु हो।
  4. चैथे घर में बुध और नौवें घर में चन्द्र हो।
  5. पाँचवे घर मे बुध और नौवें घर में सूर्य हो।
  6. छठें घर में बुध और नौवें घर में केतु हों।
  7. दसवें घर या ग्यारहवें घर में बुध और नौवें घर में शनि हों।
  8. बारहवें घर में बुध और नौवें घर में बृहस्पति हो।

उपयुक्त ग्रह-स्थितियों में बुध मुकाबले का ग्रह बन जाता है। तब वह दूसरे ग्रहों के फल बिगाड सकता है और जातक का अनिष्ट करता है। उससे जातक का परिवार भी प्रभावित होता है। इससे मुक्त होने के लिए बुध का उपचार सहायक होता है।

बृहस्पति से पितृ ऋण 

1.बृहस्पति केन्द्र में  और शनि दूसरे घर में हो।

2.बृहस्पति केन्द्र में और शुक्र पांचवें घर में हों।

3.बृहस्पति केंन्द्र में और बुध नौवे घर में हो।

4.बृहस्पति केंन्द्र में और राहु बारहवें घर में हो।

5.बृहस्पति केंन्द्र में और शुक्र तीसरे स्थान या छठें घर में हों।

6.बृहस्पति केंन्द्र में और शनि तीसरे या छठे घर में हों।

उपयुक्त ग्रह स्थितियों में पितृ-ऋण योग बनाने के लिए मुख्य भूमिका बृहस्पति की होती है। अतः बृहस्पति का उपचार करने पर अनिष्ट से मुक्ति मिलती है।

अन्य ग्रहों से पितृ-ऋण

1.राहु, केतु या शुक्र पांचवें घर में हो; सूर्य पहले या ग्यारहवें घर में न हो।

2.बुध, शुक्र या शनि चैथे घर में हो; चन्द्रमा चौथे घर के अतिरिक्त कही भी हो।

3.बुध और केतु पहले या आठवें घर में हों; मंगल सातवें घर में ना हो।,

4.चन्द्रमा तीसरे या छठें घर में हों; बुध दूसरे और बारहवें घर में न हो।

5.सूर्य, चन्द्र, राहु दूसरे व सातवे घर में हों, शुक्र पहले या आठवे घर में ना हो।

6.सूर्य, चन्द्र, मंगल दसवें या नौवें में हों; शनि तीसरे या चौथे घर में ना हों।

7.राहु छठें घर के अतिरिक्त कहीं भी हो और सूर्य,शुक्र तथा मंगल बारहवें घर में हो।

8.केतु दूसरे घर के अतिरिक्त कही भी हो; चन्द्र और मंगल छठें घर में हों।

इन योगों में क्रमशः सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, शुक्र, शनि, राहु, केतु पीडित होते है।

विशेष- उपर्युक्त ग्रह योगों के अतिरिक्त दूसरे, पांचवे, नौंवें, और बारहवें घर भी पीडित हों, तो पितृ-ऋण पूरा होता , अन्यथा नही ।

लाल किताब के अनुसार उपरोक्त योग केवल जन्म-पत्री के आधार पर बनते है। इनसे वर्षफल का कोई सरोकार नहीं होता है।

 स्व ऋण दोष

कारण-नास्तिकता के कारण जातक स्वयं पुराने रश्मों-रिवाज पर पेशाब की धार मारने की प्रवृति रखता हो, तो वह स्वयं ऋण दोष होता है।

ग्रह-संकेत-पाँचवें घर में शुक्र या पापी ग्रह हों तो सूर्य पीड़ित हो जाता है।

निशानी-घर में धरती के नीचे अग्निकुण्ड़ हो या आकश की तरफ छत में से रोशनी आने के रास्ते आम हो।

अनिष्ट फल-जातक पहले तो उन्नति के शिखर पर पहुच जाता है, धन संचित करता है, मान-प्रतिष्ठा प्राप्त करता है, फिर अकस्मात् कहर बरपा हो जाता है। सारी दौलत खर्च हो जाती है या खो जाती है या चोरी हो जाती है। मान-प्रतिष्ठा मिट्टी में मिल जाती है। ऐसी दशा तब आती है, जब जातक का पुत्र ग्यारह महीने का यो ग्यारह साल का हो। लाल गाय या भूरी भैंस खो जाती है या मर जाती है। शरीर बुरी तरह प्रभावित होता है। अंग अकड़ जाते हैं। हिलने-डुलने में मुश्किल होती है। मुँह में हर समय थूक आता रहता है।

निवारण-सूर्य का विधिपूर्वक यज्ञ करें। परिवार में जहाँ तक रक्त का सम्बन्ध हो, वहाँ तक सभी से यज्ञ का खर्च बराबर बांटकर वसूल करें। ऐसा करने पर स्व ऋण से मुक्ति मिलती है।

जब भी कोई काम शुरु करना हो, तब थोडा़ मीठा मुह मे डालकर कुछ घूंट पानी पीने के बाद काम शुरू करें।

मातृ ऋण

कारण-अपनी सन्तान उत्पन्न हो जाने के बाद माता को घर से निकालना या दुःखी करना या उसके खुद ही दुखी हो जाने पर उसकी अपेक्षा करना।

ग्रह-संकेत- चैथे घर में केतू हो, तो चन्द्रमा पीडित हो जाता है।

अनिष्ट फल- अप्रत्याशित और अपरिहार्य परिस्थितियों के कारण जातक की सारी दौलत खर्च हो जाती है। संपदा नष्ट होने लगती है। घर में दुधारू पशु या घोडे हों, तो उनकी मृत्यु हो जाती है।

जातक किशोर या नौजवान हो, तो उसकी शिक्षा मे गतिरोध उत्पन्न हो जाता है। जो कोई उसकी मदद करने की कोशिश करता है उसका भी अनिष्ट हो जाता है। घर का नल, कुआँ या तालाब हो, तो वह सूख जाता है। जातक की अनुभव करने की शक्ति का ह्नास हो जाता है।

निवारण-परिवार के प्रत्येक सदस्य से बराबर भाग में चाँदी लेकर दरिया के जल में एक ही दिन, एक साथ बहाने से मातृ ऋण से मुक्ति मिलती है। प्रतिदिन बड़ो के चरण छूकर उनका आर्शीवाद प्राप्त करना विशेष लाभकारी है।

स्त्री ऋण

कारण-प्रसव काल के समय स्त्री को किसी लालच के कारण मार डालना। ग्रह-संकेत-दूसरे व सातवें घरों में सूर्य, चन्द्र और राहु बैठे हों, तो शुक्र पीडित होता है। निशानी-उस घर के लोगों में दाँतों वाले जानवरों, विशेषकर  गाय को पालने से अरूचि या घृणा होगी। अनिष्ट-शुक्र पीडित होने का विशेष अनिष्ट है। खुशी में गमी, रंग में भंग। परिवार में किसी शादी -विवाह के अवसर पर अचानक किसी की मृत्यु हो जाए या किसी को लकवा मार जाये या लकवा मार जाये या किसी घातक रोग का दौरा पड़ जाये तो समझिए कि स्त्री के फलस्वरूप शुक्र पीडित है। एक और बारात और डोली दूसरी ओर अर्थी और मातम यही शुक्र के पीड़ित होने की निशानी है। जातक का अंगूठा अकारण ही निष्क्रिय हो जाता है। वह स्वप्नदोष और त्वचीय रोगों से पीडीत हो जाता है।

निवारण परिवार के सभी सदस्यों से बराबर मात्रा में धन एकत्रित करके एक दिन एक ही समय पर, सौ गायों को उत्तम भोजन(चारा-दाना आदि) खिलाने में स्त्री ऋण से मुक्ति मिलती है।

साफ-सुथरे वस्त्र सलीके से पहनने पर भी शुक्र के अनिष्ट से शान्ति मिलती है।

संबंधी ऋण

कारण-किसी मित्र या संबंधी को विष देकर मारने का प्रयास करना या मारना, किसी की पकी फसल मे आग लगा देना, किसी की भैंस बच्चा देने वाली हो उसको मार देना या मरवा देना। किसी के मकान मे आग लगा देना।

ग्रह-संकेतपहले या आठवें घर में बुध या केतू हों, तो मंगल पीडित हो जाता है।

निशानीजातक अपने सम्बन्धियों से मेल-मिलाप नही ंरखता, उनसे घृणा करता है।

बच्चो के जन्म दिन नही मनाता। पर्व-त्योहारों पर खुशियाँ नही मनाता। भावहीन होता है।

अनिष्ट– युवा होते ही जातक मान सम्मान प्राप्त करने

लगता है। प्रचुर धन संचय करता है। सम्पत्ति अर्जित करता है। जो लोग उसके मार्ग में रोंडा अटकाने का प्रयास करते हैं, वे स्वयं ही मिट जातें है। सफलता निश्चित दिखाई देती है, लेकिन अचानक पासा पलट जाता है।

मुसीबत पर मुसीबत आती है। शक्ति होने पर भी सन्तान नही होती, होती है तो जीवित नही रहती, जीवित रहती है तो अपाहिज हो जाती है। शरीर मे रक्त की कमी हो जाती है, जोड़ काम नही करते, एक आँख से काना हो जाता है। क्रोध अधिक हो आता है। लडाई-झगडें करता है और पिटता है।

निवारण परिवार के सब सदस्यों से बराबर मात्रा में धन इक्कठा करके गरीबो के इलाज के लिए किसी वैध चिकित्सक को दे दें। आँखों में सफेंद सुरमा लगाने से भी मंगल के अनिष्ट प्रभावों से मुक्ति मिलती है।

बहन-बेटी का ऋण

कारण-किसी की बहन-बेटी पर अत्याचार कियें हों, या उसकी हत्या कर दी हो।

ग्रह-संकेत-तीसरे या छठे घर में चन्द्रमा हो, तो बुध पीडित होता है।

निशानी मासूम बच्चों को चोरी-छिपे बेच देने या बदल देने की प्रवृत्ति।

अनिष्टबहन बेटी की शादी के समय या जन्म के समय एकाएक दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं घटित होती है। जातक बुरी तरह बर्बाद हो जाता है। धन-कुबेर भी हुआ तो कंगाल हो जाता है। कभी-कभी संतान के जन्म के समय भी दुर्भाग्य की मार पडती है।

जातक के शरीर पर इसका बहुत बुरा प्रभाव पडता है। दांत झड जाते है। सूंघने की शक्ति बिल्कुल नही रहती । सम्भोग करने की शक्ति क्षीण हो जाती है या इच्छा नही होती।

निवारणपरिवार के सभी सदस्य पीले रंग की कौड़ियाँ एकत्रित करें अथवा खरीद कर लाएं। उन्हें जलाकर राख बना दे। उस राख को पानी मे बहा दे।

दांतो को साफ रखने और नाक छिदवाने से भी बुध के अनिष्टों से राहत मिलती है।

पितृ ऋण

कारण-किसी भी कारण से कुल पुरोहित(बा्रहा्रण) बदल गया हो।

ग्रह-संकेतदूसरें, पांचवे,नौवे या बारहवें घर में बुध, शुक्र या राहु हों, तो बृहस्पति पीडित हो जाता है।

निशानीपडोंस मे कहीं कोई देव-मन्दिर या पीपल का वृक्ष नष्ट कर दिया गया हो।

अनिष्ट-बालों पर सफेदी आने के साथ ही दुर्भाग्य का दौर प्रारम्भ हो जाता है। रातो रात पीला सोना काला लोहा बन जाता है। लोहा राख हो जाता है। धन खो जाता है या चोरी हो जाता है। चोटी के स्थान पर सिर के बाल उड जाते है। गले में माला पहनना सुहाता है। शिक्षा में बाधा आती है। फलस्वरूप

शिक्षा अधूरी रह जाती है। जातक के बारे में निराधार अफवाहे फैलती हैं, जिससे झूठे अभियोग चलते है। निर्दोष होते हुए भी जेल के कष्ट सहने पडतें हैं

निवारण-परिवार के प्रत्येक सदस्य से एक-एक पैसा एकत्र करके मन्दिर में दान दें या अपने घर के समीपस्थ मन्दिर की सेवा करें। पीपल के वृक्ष की देखभाल करें। माथे पर पीले रंग का तिलक लगाए। केसर-तिलक सर्वात्तम होता हैं। नाक को सदा साफ रखे। कोइ भी काम करते समय नाक अवश्य साफ कर लें। सिर पर पगडी बांधे या टोपी पहनें।

निर्दयी ऋ़ण

कारण-मानव हत्या करना या धोखा देकर किसी का मकान छीन लेना और उसका मूल्य न चुकाना।

ग्रह-संकेत-दसवे, ग्यारहवें घरों में सूर्य, चन्द्र या मंगल हों, तो शनि पीडित हो जाता है।

निशानी-घर के मकान का मुख्य द्वार दक्षिण दिशा में हो। अनाथों से भूमि छीनकर मकान बनाया हो अथवा मार्ग में या कुएँ की छत पर कमरे बनाए गए हों।

अनिष्ट-पीडित शनि अनिष्ट करता है। परिवार के लोंगों पर विपत्तियो का पहाड टूट पडता है। अग्निकाण्ड होते है। घर ढह जाते है। परिवार के सदस्य दुर्घटनाओं के शिकार होते हैं  अथवा अपाहित हो जाते है, शरीर के बाल झड जाते है। शनि के पीडित होने पर पलकों और भौंहो के बाल विशेष रूप से झडने लगते है।

निवारण-

परिवार के सभी सदस्यों से धन एकत्रित करके एक दिन एक साथ सौ गरीब मजदूरों को भोजन खिलायें  अथवा सौ तालाबों से मछलियाँ इकट्ठी करके परिवार के सभी सदस्य उन्हें भोजन दें। 43 दिन तक कौओं कों रोटी देन, प्रतिदिन कीकर की दाँतुन करने और लोहे का दान करने से भी शनि के अनिष्ट-निवारण में सहाया मिलती है।

अज्ञात का ऋण

कारण-जिन लोगों से वास्ता पडें उनके साथ धोखा-धडी करके उनका वंश-नाश कर देना।

ग्रह-संकेंत-बारहवें घर में सूर्य, चन्द्र या मंगल हो, तो राहु पीडित हो जाता है।

निशानी-घर की द़िक्षण दिशा की दिवार के साथ वीरान कब्रिस्तान या भडभूजे की भट्टी होगी। घर के मु़ख्य द्वार की दहलीज के नीचे से घर का गन्दा पानी बाहन निकालने की नाली बहती होगी।

अनिष्ट-राहु अचानक अनिष्ट करने वाला ग्रह है। पलक झपकते ही दुर्भाग्य की बिजली कौंध जाती है। जहाँ न्याय की आशा हो वहां अन्याय मिलता हैं। चोरी, डाका, हत्या,  आगजनी, बलात्कार जैसे अपराधों के निराधार आरोप लगते है। अभियोग चलते हैं। निर्दोष होते हुए भी जातक जेल की हवा खाता है। काला कुत्ता खो जाए या मर जाये, हाथों के नाखुन झड जाए, सोचने -विचारने की शक्ति मस्तिष्क से लोप हो जाए। शत्रुओ की संख्या में वृद्वि हो।

निवारण-परिवार के प्रत्येक सदस्य से एक-एक नारियल लेकर एक दिन, एक ही साथ दरिया के पानी में प्रवाहित कर दें।

सिर पर चोटी रखना, ससुराल के लोगों से मेल मिलाप रखना, संयुक्त परिवार में रहना।

दैवी ऋण

कारण-बुरी नीयत के कारण दूसरो के बेटे या कुत्ते को नष्ट किया हो।

ग्रह-संकेत-छठे घर में चन्द्र या मंगल हो, तो केतु पीडित होता है।

निशानी-दूसरों के पुत्र को धाखे से मारना, कुत्तों को गोली से मारना या मरवाना, संबंधियों के प्रति बुंरी नीयत रखते हुए उनके वंश नाश कर देना।

अनिष्ट 

केतु के पीडित होने से नर-सन्तान का नाश होता है। नर-सन्तान तो प्रायः होती नहीं, होती है तो जीवित नहीं रहती। जीवित भी रही तो लूली-लंगडी, अन्धी-बहरी, अपंग-अपाहित होती है।

निवारण-परिवार के प्रत्येक सदस्य के बराबर मात्रा में धन एकत्र करके ही एक दिन, एक साथ सौ कुत्तों को रोटी खिलायें। पडोंस में रहने वाली विधवा की सहायता करके उसका आशीर्वाद लें।

घर में काले रंग का कुत्ता पालें तथा कान छेदन करवाएँ।

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