स्त्री शरीर के रहस्य
स्त्रियों के शरीर पर कुछ ऐसे ही चिह्न होते हैं जिनसे उनके व्यक्तित्व के बारे में काफी कुछ पता लगाया जा सकता है। आइए जानते हैं स्त्रियों के व्यक्तित्व के कुछ गुप्त रहस्य-
तिल
- बायां अंग- शुभ
- भौहों के मध्य- राज्यप्रद
- गाल- मिठाइयां और स्वादिष्ट भोजन प्राप्त होते हैं
- नाक पर तिल- राजपत्नी
- कान या गले पर तिल- प्रथम संतान पुत्र होता है
तलुआ
- चिकने, मुलायम, सम हों- सुख भोगने वाली
- कटे-फटे हुए- दुख देने वाले
- शंख, स्वस्तिक, चक्र, कमल, ध्वज, मत्स्य या छाते के चिह्न- रानी और सुख भोगने वाली होती है।
- सांप, चूहा व कौआ का चिह्न- दुख भोगने वाली और धनहीन होती है।
नाखून
- लाल-चिकने- सुख मिलता है।
- कटे-फटे- दुख मिलता है।
अंगूठा
- उन्नत, पुष्ट और गोल- सुखदायक
- टेढ़ा या छोटा और चिपटा- दुख देने वाला
पैर की अंगुली
- कोमल, गोल- सुख देने वाली
- लंबी तथा पतली- अशुभ मानी गई है।
पैर
- चलने से पीछे से मार्ग में धूल उड़े वह कुलों को कलंकित करने वाली होती है।
- यदि किसी स्त्री की कनिष्ठा अंगुली भूमि का स्पर्श न करें तो वह एक पति को त्याग कर दूसरा विवाह करती है।
- पैर का ऊपर वाला भाग ऊंचा, पसीनारहित, पुष्ट चिकना और कोमल हो तो वह रानी होती है। अगर विपरीत हो तो दरिद्रता आती है।
- रोम सहित पैर का ऊपर का भाग या मांसहीन हो तो उसे अशुभ माना गया है।
- पैर का पिछला भाग यानी एड़ी समान हो तो शुभ माना गया है।
कमर
- चौबीस अंगुल कमर और ऊंचा नितंब सौभाग्यदायक माना गया है। अगर कमर टेढ़ी, चपटी, लंबी व मांसरहित हो, छोटी हो और रोमयुक्त हो तो अशुभ माना गया है और वैधव्य देने वाला होता है।
नाभि
- गहरी, दाहिनी तरफ घूमी हुई हो तो सब सुख देने वाली मानी गई है। ऊपर को उठी हुई ग्रंथि तथा वामावर्त वाली नाभि अशुभ फल देने वाली होती है।
नारी की सुंदरता का रहस्य
शायद आपको पता नहीं होगा,स्त्री पुरुषों से ज्यादा सुंदर क्यों दिखाई पड़ती है? शायद आपको खयाल न होगा,स्त्री के व्यक्तित्व में एक राउन्डनेस,एक सुडौलता क्यों दिखाई पड़ती है? वह पुरुष के व्यक्तित्व में क्यों नहीं दिखाई पड़ती? शायद आपको खयाल में न होगा कि स्त्री के व्यक्तित्व में एक संगीत,एक नृत्य,एक इनर डांस,एक भीतरी नृत्य क्यों दिखाई पड़ता है जो पुरुष में नहीं दिखाई पड़ता। एक छोटा-सा कारण है।
एक छोटा सा,इतना छोटा है कि आप कल्पना भी नहीं कर सकते। इतने छोटे-से कारण पर व्यक्तित्व का इतना भेद पैदा हो जाता है। मां के पेट में जो बच्चा निर्मित होता है उसके पहले अणु में चौबीस जीवाणु पुरुष के होते है और चौबीस जीवाणु स्त्री के होते हैं। अगर चौबीस-चौबीस के दोनों जीवाणु मिलते हैं तो अड़तालीस जीवाणुओं का पहला सेल(कोष्ठ)निर्मित होता है। अड़तालीस सेल से जो प्राण पैदा होता है वह स्त्री का शरीर बन जाता है। उसके दोनों बाजू 24-24 सेल के संतुलित होते हैं। पुरुष का जो जीवाणु होता है वह सैंतालिस जीवाणुओं का होता है। एक तरफ चौबीस होते हैं,एक तरफ तेइस।
बस यहीं संतुलन टूट गया और वहीं से व्यक्तित्व का भी। स्त्री के दोनों पलड़े व्यक्तित्व के बाबत संतुलन के हैं। उससे सारा स्त्री का सौंदर्य,उसकी सुड़ौलता,उसकी कला,उसके व्यक्तित्व का रस,उसके व्यक्तित्व का काव्य पैदा होता है और पुरुष के व्यक्तित्व में जरा सी कमी है। क्योंकि उसका तराजू संतुलित नहीं है,तराजू का एक पलड़ा चौबीस जीवाणुओं से बना है तो दूसरा तेईस का। मां से जो जीवाणु मिलता है वह चौबीस का बना हुआ है और पुरुष से जो मिलता है वह तेईस का बना हुआ है। पुरुष के जीवाणुओं में दो तरह के जीवाणु होते हैं: चौबीस कोष्ठधारी और तेईस कोष्ठधारी।
तेईस कोष्ठधारी जीवाणु अगर मां के चौबीस कोष्ठधारी से मिलता है तो पुरुष का जन्म होता है और यदि पुरुष के चौबीस कोष्ठधारी स्त्री के चौबीस कोष्ठधारी से मिलता है तो स्त्री का जन्म होता है। निश्चित ही स्त्री के गर्भ में पल रहा बच्चा स्त्री होगा या पुरुष,इसके लिए जिम्मेवार स्त्री नहीं बल्कि पुरुष है। चूंकि पुरुष की पैदाइश एक असंतुलन से होती है,इसलिए पुरुष में एक बेचैनी जीवन भर बनी रहती है,एक असंतोष बना रहता है।
क्या करुं,क्या न करुं,एक चिन्ता,एक बेचैनी,यह कर लूं,वह कर लूं। पुरुष की जो बेचैनी है वह एक छोटी सी घटना से शुरु होती है और वह घटना है कि उसके एक पलड़े पर एक अणु कम है। उसके व्यक्तित्व का संतुलन कम है। स्त्री का संतुलन पूरा है,उसकी लयबद्धता पूरी है। इतनी सी घटना इतना फरक लाती है। इससे स्त्री सुंदर तो हो सकी लेकिन विकासमान नहीं हो सकी; क्योंकि जिस व्यक्तित्व में समता है वह विकास नहीं करता,वह ठहर जाता है।
पुरुष का व्यक्तित्व विषम है। विषम होने के कारण वह दौड़ता है,विकास करता है। एवरेस्ट चढ़ता है,पहाड़ पार करता है,चांद पर जाएगा,तारों पर जाएगा,खोजबीन करेगा,सोचेगा,ग्रंथ लिखेगा,धर्म-निर्माण करेगा।
स्त्री यह कुछ भी नहीं करेगी। न वह एवरेस्ट पर जाएगी,न वह चांद-तारों पर जाएगी,न वह धर्मों की खोज करेगी,न ग्रंथ लिखेगी,न विज्ञान की शोध करेगी। वह कुछ भी नहीं करेगी। उसके व्यक्तित्व में एक संतुलन उसे पार होने के लिए तीव्रता से नहीं भरता है। पुरुष ने सारी सभ्यता विकसित की। इस एक छोटी सी जैविक परिघटना के कारण। उसमें एक अणु कम है। स्त्री ने सारी सभ्यताएं विकसित नहीं की। उसमें एक अणु पूरा है। इतनी सी जैविक परिघटना व्यक्तित्व का भेद ला देती है।