भगवान शिव के माता पिता कौन है ?
भगवान शिव का जन्म – मित्रो भगवन शिव को भोलेनाथ, शंकर, नीलकंठ, गंगाधार आदि नामों से भी जाना जाता है। तंत्र साधना में इन्हे भैरव के नाम से भी जाना जाता है। वही वेदो में इनका नाम रुद्र है। भगवन शिव व्यक्ति की चेतना के अन्तर्यामी हैं। इनकी अर्धांगिनी का नाम पार्वती है। इनके पुत्र कार्तिकेय , अय्यपा और गणेश हैं, तथा पुत्रियां अशोक सुंदरी, ज्योति और मनसा देवी हैं ।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि, देवों के देव महादेव के माता-पिता कौन थे ? जब समस्त सृष्ट्रि स्वयं महादेव के अधीन है तो भला महादेव को जन्म कौन दे सकता है ? मित्रो आपमें से कई लोगो का ये भी मानना है की शंकर भगवान तो स्वयंभू हैं अर्थात वे खुद ही अपने माता- पिता हैं। शिव जी को किसी ने पैदा नहीं किया.. वे अजन्मे हैं और मृत्यु से परे हैं.. वे महाकाल हैं। लेकिन दूसरी और हमारे पुराणों का तो कुछ और ही कहना है, तो चलिए आज हम आपके इसी प्रश्न का उत्तर देने का सार्थक प्रयास करने जा रहे है जो पुराणों में वर्णित है।
भगवान शिव का जन्म कब हुआ
श्री मद्भागवत देवी महापुराण में शिवजी के माता-पिता का उल्लेख मिलता है. एक बार नारद जी ने अपने पिता ब्रह्माजी से पूछा की इस सृष्टि का निर्माण किसने किया है ? साथ ही उन्होंने पूछा कि, भगवान विष्णु, भगवान शिव और आपके पिता कौन हैं?
नारद जी के सवालों का जवाब देते हुए ब्रह्मा जी बोले की – देवी दुर्गा और शिव स्वरूप ब्रह्मा के योग से ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश की उत्पत्ति हुई है. यानी प्रकृति स्वरूप देवी दुर्गा ही हम तीनों की माता है और परब्रह्मा अर्थात ‘काल सदाशिव’ ही हमारे पिता हैं।
भगवान शिव का जन्म कहां हुआ
चलिए इस तथ्य के सत्यापन के लिए लिए चलते है आपको श्री शिव महापुराण के विध्वेश्वर संहिता खण्ड पृष्ठ 24 से 30 में जिसके अनुसार, एक बार किसी बात को लेकर ब्रह्मा जी और विष्णु जी का किसी बात पर झगड़ा हो जाता है. तब ब्रह्मा जी विष्णु से कहते हैं, मैं तुम्हारा पिता हूं क्योंकि इस सृष्टि की उत्पत्ति मुझसे ही हुई है, मैं प्रजापिता हूं. तब विष्णु जी कहते हैं, मैं आपका पिता हूं, क्योंकि आप मेरी नाभि कमल से उत्पन्न हुए हैं।
ब्रह्मा-विष्णु का युद्ध
ब्रह्मा-विष्णु के इस झगड़े को सनकर उसी समय सदाशिव अर्थात् काल ब्रह्म ने उन दोनों के बीच में एक सफेद रंग का प्रकाशमय स्तंभ खड़ा कर दिया, फिर स्वयं शंकर के रूप में प्रकट होकर उनको बताया कि तुम कोई भी कर्ता नहीं हो। हे पुत्रो! मैंने तुमको जगत की उत्पत्ति और स्थिति रूपी दो कार्य दिए हैं, इसी प्रकार मैंने शंकर और रूद्र को दो कार्य “संहार” व “तिरोगति” दिए हैं, मुझे ही वेदों में ब्रह्म कहा गया है।
मेरे पाँच मुख हैं, एक मुख से अकार (अ), दूसरे मुख से उकार (उ) तथा तीसरे मुख से मुकार (म), चैथे मुख से बिन्दु (.) तथा पाँचवे मुख से नाद (शब्द) प्रकट हुए हैं, उन्हीं पाँच अववयों से एकीभूत होकर एक अक्षर ओम् (ऊँ) बना है, यह ही मेरा मूल मन्त्र भी है। इस प्रकार शिव महापुराण के इस प्रकरण से सिद्ध होता है कि श्री शकंर जी की माता श्री दुर्गा देवी (अष्टांगी देवी) है तथा पिता सदाशिव अर्थात् “काल ब्रह्म” है। अतः शिव की उत्पति ॐ से ही हुई है और ॐ ही शिव के पिता है और जो साक्षात् परब्रह्मा अर्थात ‘काल सदाशिव’ है।
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भगवान शिव के पिता कौन है
तो जब ॐ ही भगवान शिव है तो भगवान शिव के कोई माता-पिता नहीं हैं, इसीलिए उन्हें स्वयंभू कहा जाता है। अर्थात् भगवान् शिव स्वयं अपने द्वारा निर्मित है। और न केवल शिव बल्कि ब्रह्मा और विष्णु भी स्वयं निर्मित हैं। उन्हें खुद को बनाने के लिए जैविक योनि या गर्भ की जरूरत नहीं है। तो जब शिव ही अपने माता पिता है तो फिर शक्ति क्या है, उनका अस्तित्व क्या है? दरअसल शक्ति शब्द का उपयोग करके शिव अनंत दिव्य स्त्री ऊर्जा कुंडलिनी को ही इंगित कर रहे हैं।
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कुंडलिनी शक्ति
अब यहाँ आपको बता दे की कुंडलिनी वो शक्ति है जो सभी जीवित चीजों (मनुष्यों, जानवरों, पक्षियों आदि) में रहने वाली प्राथमिक आध्यात्मिक ऊर्जा है, जो हमारे आध्यात्मिक विकास के लिए जिम्मेदार है। कुंडलिनी अकथनीय ऊर्जा है जो किसी भी चीज को अपनी इच्छा के अनुसार बना सकती और प्रकट कर सकती है, चाहे वह बहु-आयामी दिव्य ऊर्जा हो या कोई भी 3D भौतिक ऊर्जा … …कोई सीमा नहीं है!
और चूंकि वह स्वयंभू है (अर्थात जो जैविक यौन ऊर्जा से पैदा नहीं हुआ), कुंडलिनी ऊर्जा शिव के रूप या शरीर को बनाने के लिए जिम्मेदार है। इसलिए, वह शिव की और साथ ही ब्रह्मा और विष्णु की भी माँ है। शिव को रूप देने के अलावा शिव में कुंडलिनी शक्ति के भी कई रूप हैं, जो कई अलग-अलग भूमिकाएं निभाते हैं। तो अब आप जानते हैं कि शिव के माता-पिता नहीं हैं। और अधिक सटीक रूप से, क्यों की शिव स्वयं ही अपनी माता और पिता दोनों है।