दीपावली पर निबंध – दीपावली पर लेख –
Deepawali par Nibandh – दीपावली का संबंध हमारी पारंपरिक अर्थव्यवस्था से बहुत गहरा है। खरीफ की फसल घर में आने की खुशी राम के अयोध्या आगमन के साथ जुड़कर कई गुना बढ़ जाती है। बाजार लक-दक हो उठते हैं, क्योंकि किसानों के घर में लक्ष्मी का प्रवेश होता है। कितने आयाम है दीपावली के कई सारे व्यवहारिक और कई सारे भौतिक।
पांच दिवसीय दीपावली उत्सव में जीवन को बहुत बारीकी और विद्वता से गूंथा गया है। उत्सव तो इसका एक आवश्यक पक्ष है, लेकिन इसके आस-पास धर्म, सौंदर्य, स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था, भौतिकता, रिश्ते और अध्यात्म का भी सारगर्भित महत्व है। दीपावली के पांच दिवसीय उत्सव में धन्वंतरि जयंती, नरक चौदस, दीपोत्सव, गोवर्धन पूजा और यम द्वितीया या भाई-दूज का समावेश है।
अर्थ
राम के प्रकरण को अलग कर दें, तो पारंपरिक तौर पर दीपावली हमारी कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था में एक फसल के घर आने का उत्सव हुआ करता है। देखें कि किस तरह इस त्योहार को गूंथा गया है। दीपावली पर मिट्टी से लेकर रंग तक और झाड़ू से लेकर कंदीलों तक का पूजा में उपयोग किया जाता है। इसका सीधा-सा मतलब है कि फसल की बिक्री के बाद धन का जो प्रवाह किसानों के घरों में बनता है, वह समाज के दूसरों तबके तक भी पहुंचे। तभी तो दीपावली पर सब कुछ नए का आग्रह हुआ करता है।
चाहे आपके घरों में मिट्टी के दीये भरे पड़े हो, फिर भी शगुन के तौर पर पांच दीए खरीदे ही जाएंगे। पांचों दिन के लिए एक-एक झाड़ू की खरीदी की ही जाती है, ये भी लक्ष्मी-पूजन का शगुन हुआ करता है। बताशों की जरूरत चाहे हो या न हो, दीपावली के प्रसाद के तौर पर ये खरीदे ही जाएंगे। तो इस लिहाज से दीपावली अपने उत्सव में अर्थ के पक्ष को समेटे हुए भी हैं।
मोक्ष
कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी मतलब दीपावली के एक दिन पहले नरक चतुर्दशी मनाई जाती है। इससे जुड़ी हुई यूं तो कई किंवदंतियां है, मगर मान्यता ये है कि नरक चतुर्दशी का पूजन कर अकाल मृत्यु से मुक्ति और स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए यमराज से प्रार्थना की जाती है। इससे जुड़ी कथाओं के तहत भगवान श्रीकृष्ण ने कार्तिक माह में कृष्ण चतुर्दशी के दिन नरकासुर का वध करके देवताओं और ऋषियों को उसके आतंक से मुक्ति दिलवाई थी।
इसके साथ ही भगवान कृष्ण ने सोलह हजार कन्याओं को नरकासुर के बंदीगृह से मुक्त करवाया था। कथाएं चाहे जो हों, बात तो सिर्फ इतनी ही है चाहे हम इसे अंधकार पर प्रकाश के उत्सव के तौर पर मनाएं, लेकिन इसमें हमारे इहलोक के साथ ही हमारे परलोक की भी चिंता का निदान किया जाता है।
ज्ञान
कार्तिक अमावस्या पर जब चांद गायब रहता है रात गहरे अंधकार को साथ लेकर उतरती है, हम मिट्टी के छोटे-छोटे दीपकों की रोशनी लेकर उस गहन अंधकार से लड़ने की कोशिश करते हैं और उसमें कामयाब भी होते हैं, लेकिन ये सिर्फ प्रतीक है। अंधकार प्रतीक है, जीवन में असद् का, नकारात्मकता का, विकारों, अज्ञान और बुराइयों का…। प्रकाश प्रतीक है, सद् का, सकारात्मकता का, सद्विचारों और ज्ञान उत्सव का। तभी तो लक्षमी के साथ ही सरस्वती और गणपति की भी पूजा की जाती है।
सरस्वती जो कला और विद्या का प्रतीक है और गणपति जो बुद्धि का प्रतीक है। इसका अर्थ एकदम साफ है, विद्या-बुद्धि के साथ ही संपदा का आगमन होगा, तभी वह सद् भी होगी, शुभ भी…। ज्ञान के बिना समृद्धि स्थायी नहीं है, तभी तो लक्ष्मी के पास ही सरस्वती को स्थान दिया गया है।
आजीविका
चाहे गोवर्धन पूजा का संबंध कृष्ण और इंद्र के बीच की घटना से हो, लेकिन कृष्ण का हस्तक्षेप यहां प्रकृति और अर्थव्यवस्था के सहयोगी साधनों से है। इस दिन ग्रामीण अर्थव्यवस्था फिर से जीवंत होती है। पशुओं को सजाया जाता है, क्योंकि हमारी पारंपरिक अर्थव्यवस्था में पशुधन का खास स्थान है। ये हमें प्रकृति से भी जोड़ता है, क्योंकि प्रकृति के बिना हमारा अस्तित्व संभव नहीं हो पाता है।
रिश्ता
यम द्वितीया या भाई-दूज इस विराट पर्व का समापन भी है और सबसे खूबसूरत पक्ष… हमारा पूरा जीवन, जिसमें हम स्वास्थ्य, सौंदर्य, समृद्धि, ज्ञान सबको जोड़ लें, लेकिन यदि रिश्ते छूट जाएं तो जीवन का अर्थ भी छूट जाता है। इसलिए भाई-दूज को रिश्तों को सहेजने का पर्व है। कहने को यह भाई-बहन का पर्व है, लेकिन इसमें ब्याही बेटियों को अपने उत्सव में शामिल करने की भावना का अहसास है।
कुल मिलाकर लक्ष्मी वहां नहीं ठहरती है, जहां बीमारी, गंदगी हो। जहां कंजूसी हो वहां भी कृपा नहीं रहती मतलब लक्ष्मी सद् अवधारणा है। लक्ष्मी सिर्फ धन की देवी नहीं हैं, वो जीवन की समग्रता का पर्याय है। लक्ष्मी मतलब स्वास्थ्य, स्वच्छता, शांति, उदारता… जहां सब कुछ अच्छा हो वहां लक्ष्मी ठहरती है। फिर दीपावली पर होने वाले पूजन का नाम सिर्फ लक्ष्मी पूजन है, पूजन में तो बुद्धि के देवता गणपति और कला-ज्ञान की देवी सरस्वती भी शामिल हुआ करती है।
सवाल ये उठा था कि दीपावली यदि सिर्फ लक्ष्मी-पूजन का ही पर्व होता तो एक ही दिन होता… ऐसा क्यों है कि दीपावली को हम पाँच दिन तक मनाते हैं? सोचें तो लगता है कि दीपावली सिर्फ धन की देवी लक्ष्मी की पूजा का उत्सव ही नहीं है। ये जीवन की समग्रता का उत्सव है। अच्छा स्वास्थ्य, उदार मन, मोक्ष, समृद्धि, अर्थ और रिश्ते… सभी का पर्व है दीपावली।
लक्ष्मी मतलब विष्णु की अर्धांगिनी तथा विष्णु मतलब प्रजापालक जहा लक्ष्मी सुख और समृद्धि की देवी है, सिर्फ समृद्धि की नहीं। समृद्धि सुख के रास्ते आती हैं, तभी तो सारे सद् जाकर समृद्धि में मिलते हैं। ये हमारी कुंद बुद्धि है कि हमने लक्ष्मी को सिर्फ समृद्धि से जोड़े रखा है जबकि लक्ष्मी एक विस्तृत विचार है, फिर दीपावली कैसे हुआ सिर्फ समृद्धि का उत्सव, दीपावली मतलब सद् का उत्सव पूरी सृष्टि के लिए सार्वजनिक कल्याण का उत्सव… जीवन की समग्रता का उत्सव, मानवता के सर्वांग उत्थान का उत्सव है, इसे सिर्फ समृद्धि से जोड़कर हम इस उत्सव को दर्शन को सीमित कर रहे हैं।
FAQ
प्रश्न – दीपावली कब है
उत्तर – सोमवार 24 अक्टूबर, 2022
प्रश्न – दीपावली के 5 दिन कौन से हैं?
उत्तर – धनतेरस, नर्क चतुर्दशी, लक्ष्मी पूजन (दीपावली), गोवर्धन पूजा, भाईदूज ।
प्रश्न – दिवाली पर आप क्या करते हैं?
उत्तर – भगवान गणेश, कुबेर और मां लक्ष्मी पूजा अर्चना करते हैं तथा लोग अपने घरों में लक्ष्मी आगमन हेतु साफ-सफाई और रंग-रोगन करते हैं ।
प्रश्न – दीपावली का सांस्कृतिक महत्व
उत्तर – दीपावली दीपों का त्योहार है। आध्यात्मिक रूप से यह ‘अन्धकार पर प्रकाश की विजय’ को दर्शाता है।