गणेश जयंती कथा और महत्व – Ganesh Jayanti 2024

गणेश जयंती – Ganesh Jayanti

गणेश जयंती हर वर्ष माघ के महीने की शुक्ल चतुर्थी (maghi ganesh jayanti) के दिन मनाया जाता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार, यह तिथि जनवरी और फरवरी महीने के मध्य में आती है। यह त्योहार पूरे भारत में, खासकर महाराष्ट्र और गोवा में भरपूर उल्लास के साथ मनाया जाता है। कई जगहों पर इसे तिलकुट चतुर्थी, वाद चतुर्थी और माघ शुक्ल चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है।

गणेश जयंती 2024 – Ganesh Jayanti 2024

गणेश जयंती पूजा समय – ganesh jayanti 2024 date

  • चतुर्थी तिथि शुरू : 17:45 – 12 फरवरी 2024
  • चतुर्थी तिथि ख़त्म : 14:40 – 13 फरवरी 2024

इस तिथि पर की गई गणेश उपासना को सर्वाधिक लाभ देती है। अग्निपुराण में भागे व मोक्ष प्राप्ति के लिए तिलकुंड चतुर्थी के व्रत का विधान बताया गया है। इस चतुर्थी पर चंद्रदर्शन निषेध है और देखने पर मानसिक विकार उत्पान्नु होते हैं।

गणेश जयंती क्यों मनाई जाती है – Ganesh Jayanti Kyu Manayi Jati Hai

ऐसी मान्यता है, कि इस दिन भगवान गणेश की सच्चे मन से पूजा करने और व्रत रखने से विघ्नहर्ता आपके सभी विघ्नों का नाश कर देंगे। इतना ही नहीं, गणेश की पूजा इस पावन दिन पर करने से सभी समस्याओं का समाधान भी मिलता है।

ऐसी मान्यता है, कि गणेश जयंती के दिन अगर कोई भी नवविवाहित जोड़ा भगवान गणेश की पूजा करता है, तो उन्हें पुत्र लाभ अवश्य होता है। अग्नि पुराण के अनुसार, इस दिन अगर कोई मनुष्य पूरे विधि विधान के साथ व्रत रखता है, तो उसे मोक्ष की प्राप्ति अवश्य होती है। गणेश जयंती पूजा में लाल वस्त्र , लाल फूल व लाल चंदन का प्रयोग किया जाता है। गणेश जयंती के व्रत, पूजा व उपाय से संकटों का नाश होता है। मनोविकार दूर होते हैं व समस्या ओं का समाधान होता है।

Ganesh Jayanti
Ganesh Jayanti

गणेश जयंती गणेश चतुर्थी से अलग कैसे हैं – Ganesh Chaturthi And Ganesh Jayanti

भारत में गणेश जयंती और गणेश चतुर्थी को काफी धूमधाम से मनाया जाता है। मगर बहुत कम लोगों को गणेश जयंती और गणेश चतुर्थी के बीच अंतर पता होगा। गणेश जयंती और गणेश चतुर्थी में सबसे बड़ा अंतर यह है, कि गणेश जयंती माघ महीने की शुक्ल चतुर्थी यानी जनवरी से फरवरी के बीच में मनाई जाती है, जबकि गणेश चतुर्थी भाद्रपद महीने यानी अगस्त से सितंबर के बीच में मनाई जाती है।

अगर इन दोनों के महत्व को समझें, तो गणेश जयंती के दिन भगवान गणेश का जन्म हुआ था और गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणेश ने पहली बार धरती पर अपने चरण रखे थे।

कैसे करते हैं गणेश जयंती की पूजा – Kese Karte Hai Ganesh Jayanti Ki Puja

गणेश जयंती के दिन की विशेष पूजा के उपलक्ष्य में हर साल भगवान गणेश की एक पृथक मूर्ति बनाई जाती है, जो हल्दी या सिंदूर के पाउडर से बनती है। इसके बाद, माघ शुक्ल पक्ष के चौथे दिन इस मूर्ति को विसर्जित कर दिया जाता है। गणेश जयंती के दिन भगवान गणेश की पूजा करने के लिए सिर्फ लाल वस्त्र, लाल फूल और लाल चंदन का ही प्रयोग किया जाता है।

इस दिन भक्तों को भी कुछ नियमों का विशेष रूप से पालन करना ज़रूरी है। इस दिन सभी तरह के खाने में तिल का उपयोग होना ज़रूरी है। पूजा की सुबह नहाने से पहले भक्तों को अपने शरीर पर तिल से बने लेप को लगाना ज़रूरी होता है। पूजा के दिन सभी भक्त सुबह व्रत रखते हैं और संध्या के वक्त एक छोटे अनुष्ठान के रूप में क्षमता के अनुसार भोग रखा जाता है। हर साल देशभर में गणेश जयंती के दिन गणेश जी के मंदिरों में विशेष रुप से पूजा-अर्चना की तैयारियां होती हैं, ताकि सबके जीवन में सुख और समृद्धि आए।

गणेश जयंती से जुड़ी पौराणिक कथा – Ganaesha Jayanti Ki Katha

हिंदू पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, भगवान गणेश के जन्म से जुड़ी कई कहानियां प्रचलित हैं। इन्हीं में से एक कहानी यह भी है, कि एक बार माता पार्वती को एक आज्ञाकारी पुत्र की आवश्यकता महसूस हुई, जो उनकी हर बात माने। इसी के चलते, माता ने अपने शरीर पर लगे चंदन के लेप से बाल गणेश को बनाया। गणेश जी के जन्म के बाद माता पार्वती ने उन्हें आदेश दिया, कि जब तक वह स्नान कक्ष में हैं तब तक वह बाहर पहरा दें और किसी को भी अंदर प्रवेश न करने दें।

जब बाल गणेश स्नान कक्ष के बाहर पहरा दे रहे थे, तो वहां महादेव माता पार्वती से भेंट करने आए। अपनी माता की आज्ञा का पालन कर रहे बाल गणेश ने महादेव को स्नान कक्ष में प्रवेश करने से रोक दिया। बहुत समझाने के बावजूद भी जब बाल गणेश ने महादेव को स्नान कक्ष में प्रवेश नहीं करने दिया, तब महादेव क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने त्रिशूल से बाल गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया। माता पार्वती को जब इस बात का पता चला, तो उन्होंने क्रोध में माता काली का रूप धारण कर लिया और समस्त सृष्टि के विनाश की चेतावनी दी।

इसे रोकने और माता के क्रोध को शांत करने के लिए महादेव ने एक हाथी के सिर को बाल गणेश के धड़ के साथ जोड़कर, उन्हें जीवित कर दिया। इस घटना के बाद, सभी भगवानों ने गणेश जी को वरदान दिया और उन्हें सभी देवों में सबसे ज्ञानी बनाया।

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