शिव पुराण – Shiv Puran Katha in Hindi
Shiv Puran Katha – शिव का अर्थ है कल्याण। शिव के महात्मय से ओत-प्रोत से यह पुराण शिव पुराण कथा (Shiv Puran khatha) के नाम से प्रसिद्ध है। 18 पुराणों में कहीं शिव पुराण (Shiv Puran in Hindi) तो कहीं वायु पुराण का वर्णन आता है। शिव पुराण (Shiv Puran PDF) का सम्बन्ध शैव मत से है। इस पुराण में प्रमुख रूप से शिव-भक्ति और शि व-महिमा का प्रचार-प्रसार किया गया है। शिव सहज ही प्रसन्न हो जाने वाले एवं मनोवांछित फल देने वाले हैं। किन्तु ‘शिव पुराण’ में शिव के जीवन चरित्र पर प्रकाश डालते हुए उनके रहन-सहन, विवाह और उनके पुत्रों की उत्पत्ति के विषय में विशेष रूप से बताया गया है।
Shiv Mahima – शिव महिमा
भगवान शिव सदैव लोकोपकारी और हितकारी हैं। त्रिदेवों में इन्हें संहार का देवता भी माना गया है। अन्य देवताओं की पूजा-अर्चना की तुलना में शिवोपासना को अत्यन्त सरल माना गया है। अन्य देवताओं की भांति को सुगंधित पुष्पमालाओं और मीठे पकवानों की आवश्यकता नहीं पड़ती । शिव तो स्वच्छ जल, बिल्व पत्र, कंटीले और न खाए जाने वाले पौधों के फल यथा-धूतरा आदि से ही प्रसन्न हो जाते हैं। शिव को मनोरम वेशभूषा और अलंकारों की आवश्यकता भी नहीं है। वे तो औघड़ बाबा हैं।
जटाजूट धारी, गले में लिपटे नाग और रुद्राक्ष की मालाएं, शरीर पर बाघम्बर, चिता की भस्म लगाए एवं हाथ में त्रिशूल पकड़े हुए वे सारे विश्व को अपनी पद्चाप तथा डमरू की कर्णभेदी ध्वनि से नचाते रहते हैं। इसीलिए उन्हें नटराज की संज्ञा भी दी गई है। उनकी वेशभूषा से ‘जीवन’ और ‘मृत्यु’ का बोध होता है। शीश पर गंगा और चन्द्र –जीवन एवं कला के द्योतम हैं। शरीर पर चिता की भस्म मृत्यु की प्रतीक है। यह जीवन गंगा की धारा की भांति चलते हुए अन्त में मृत्यु सागर में लीन हो जाता है।
रामचरितमानस में तुलसीदास ने जिन्हें ‘अशिव वेषधारी’ और ‘नाना वाहन नाना भेष’ वाले गणों का अधिपति कहा है, वे शिव जन-सुलभ तथा आडम्बर विहीन वेष को ही धारण करने वाले हैं। वे ‘नीलकंठ’ कहलाते हैं। क्योंकि समुद्र मंथन के समय जब देवगण एवं असुरगण अद्भुत और बहुमूल्य रत्नों को हस्तगत करने के लिए मरे जा रहे थे, तब कालकूट विष के बाहर निकलने से सभी पीछे हट गए। उसे ग्रहण करने के लिए कोई तैयार नहीं हुआ। तब शिव ने ही उस महाविनाशक विष को अपने कंठ में धारण कर लिया। तभी से शिव नीलकंठ कहलाए। क्योंकि विष के प्रभाव से उनका कंठ नीला पड़ गया था।
ऐसे परोपकारी और अपरिग्रही शिव का चरित्र वर्णित करने के लिए ही इस पुराण की रचना की गई है। यह पुराण पूर्णत: भक्ति ग्रन्थ है | इस पुराण में कलियुग के पापकर्म से ग्रसित व्यक्ति को ‘मुक्ति’ के लिए शिव-भक्ति का मार्ग सुझाया गया है। मनुष्य को निष्काम भाव से अपने समस्त कर्म शिव को अर्पित कर देने चाहिए। वेदों और उपनिषदों में ‘प्रणव – ॐ’ के जप को मुक्ति का आधार बताया गया है। प्रणव के अतिरिक्त ‘गायत्री मन्त्र’ के जप को भी शान्ति और मोक्षकारक कहा गया है।
Shiv Puran in Hindi – शिव पुराण कथा हिंदी में
भगवान नारायण जब जल में शयन कर रहे थे तभी उनकी नाभि से एक सुन्दर एवं विशाल कमल प्रकट हुआ। उस कमल में ब्रह्मा जी उत्पन्न हुये। माया के वश में होने के कारण ब्रह्मा जी अपनी उत्पत्ति के कारण को नहीं जान सके। चारों ओर उन्हें जल ही जल दिखायी पड़ा तब आकाशवाणी हुयी, ‘‘तपस्या करो’’। बारह वर्षों तक तपस्या करने के पश्चात् भगवान विष्णु ने चतुर्भुज रूप में उन्हें दर्शन दिये और कहा मैंनें तुम्हें सत्व गुण से निर्माण किया है लेकिन मायावश ब्रह्मा जी विष्णुजी के स्वरूप को न जानकर उनसे युद्ध करने लगे।
तब दोनों के विवाद को शान्त करने के लिये एक अद्भुत ज्योर्तिलिंग का अर्विभाव हुआ। दोनों बड़े आश्चर्य के साथ इस ज्योर्तिलिंग को देखते रहे और इसका स्वरूप जानने के लिये ब्रह्मा हंस स्वरूप बनाकर ऊपर की ओर और विष्णु वाराह स्वरूप धारण कर नीचे की ओर गये। लेकिन दोनों ही ज्योर्तिलिंग के आदि-अन्त का पता नहीं कर सके।
इस प्रकार 100 वर्ष बीत गये। इसके पश्चात् ज्योर्तिलिंग से उन्हें ओंकार शब्द का नाद सुनायी पड़ा और पँचमुखी एक मुर्ति दिखायी पड़ी। ये ही शिव थे। ब्रह्मा और विष्णु ने उन्हें प्रणाम किया, तब शिव ने कहा, ‘‘कि तुम दोनों मेरे ही अंश से उत्पन्न हुये हो।’’ और ब्रह्मा को सृष्टि की रचना एवं विष्णु को सृष्टि का पालन करने की जिम्मेदारी प्रदान की। शिव पुराण में 24000 श्लोक हैं। इसमें तारकासुर वध, मदन दाह, पार्वती की तपस्या, शिव-पावती विवाह, कार्तिकेय का जन्म, त्रिपुर का वध, केतकी के पुष्प शिव पुजा में निषेद्य, रावण की शिव-भक्ति (Shiv Bhakti) आदि प्रसंग वर्णित हैं।
शिव पुराण में 12 संहितायें – Shiv Puran
1. विघ्नेश्वर संहिता 2. रुद्र संहिता 3. वैनायक संहिता 4. भौम संहिता 5. मात्र संहिता 6. रूद्रएकादश संहिता7. कैलाश संहिता 8. शत् रूद्र संहिता 9. कोटि रूद्र संहिता 10. सहस्र कोटि रूद्र संहिता 11. वायवीय संहिता 12. धर्म संहिता
विघ्नेश्वर तथा रौद्रं वैनायक मनुत्तमम्। भौमं मात्र पुराणं च रूद्रैकादशं तथा।
कैलाशं शत्रूद्रं च कोटि रूद्राख्यमेव च। सहस्रकोटि रूद्राख्यंवायुवीय ततःपरम्
धर्मसंज्ञं पुराणं चेत्यैवं द्वादशः संहिता। तदैव लक्षणमुदिष्टं शैवं शाखा विभेदतः
इन संहिताओं के श्रवण करने से मनुष्य के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं तथा शिव धाम की प्राप्ति हो जाती है। मनुष्य को चाहिये कि वह भक्ति, ज्ञान, और वैराग्य से सम्पन्न हो बडे आदर से इनका श्रवण करे। बारह संहिताओं से युक्त यह दिव्य शिवपुराण परब्रह्म परमात्मा (Shiv Mahapuran) के समान विराजमान है और सबसे उत्कृष्ट गति प्रदान करने वाला है।
विघ्नेश्वर संहिता : Vighneshwar Sanhita
इस संहिता में शिवरात्रि व्रत (Shivratri Vrat), पंचकृत्य, ओंकार का महत्त्व, शिवलिंग की पूजा (Shiv Ling Puja) और दान के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है। शिव की भस्म और रुद्राक्ष का महत्त्व भी बताया गया है। रुद्राक्ष जितना छोटा होता है, उतना ही अधिक फलदायक होता है। खंडित रुद्राक्ष, कीड़ों द्वारा खाया हुआ रुद्राक्ष या गोलाई रहित रुद्राक्ष कभी धारण नहीं करना चाहिए। सर्वोत्तम रुद्राक्ष वह है जिसमें स्वयं ही छेद होता है।
सभी वर्ण के मनुष्यों को प्रात:काल की भोर वेला में उठकर सूर्य की ओर मुख करके देवताओं अर्थात् शिव का ध्यान करना चाहिए। अर्जित धन के तीन भाग करके एक भाग धन वृद्धि में, एक भाग उपभोग में और एक भाग धर्म-कर्म में व्यय करना चाहिए। इसके अलावा क्रोध कभी नहीं करना चाहिए और न ही क्रोध उत्पन्न करने वाले वचन बोलने चाहिए।
रुद्र संहिता : Rudra Sanhita
रुद्र संहिता में शिव का जीवन-चरित्र वर्णित है। इसमें नारद मोह की कथा, सती का दक्ष-यज्ञ में देह त्याग, पार्वती विवाह, मदन दहन, कार्तिकेय और गणेश पुत्रों का जन्म, पृथ्वी परिक्रमा की कथा, शंखचूड़ से युद्ध और उसके संहार आदि की कथा का विस्तार से उल्लेख है। शिव पूजा के प्रसंग में कहा गया है कि दूध, दही, मधु, घृत और गन्ने के रस (पंचामृत) से स्नान कराके चम्पक, पाटल, कनेर, मल्लिका तथा कमल के पुष्प चढ़ाएं। फिर धूप, दीप, नैवेद्य और ताम्बूल अर्पित करें। इससे शिवजी प्रसन्न हो जाते हैं।
इसी संहिता में ‘सृष्टि खण्ड’ के अन्तर्गत जगत् का आदि कारण शिव को माना गया हैं शिव से ही आद्या शक्ति ‘माया’ का आविर्भाव होता हैं फिर शिव से ही ‘ब्रह्मा’ और ‘विष्णु’ की उत्पत्ति बताई गई है।
शतरुद्र संहिता : Shatrudra Sanhita
इस संहिता में शिव के अन्य चरित्रों-हनुमान, श्वेत मुख और ऋषभदेव का वर्णन है। उन्हें शिव का अवतार कहा गया है। शिव की आठ मूर्तियां भी बताई गई हैं। इन आठ मूर्तियों से भूमि, जल, अग्नि, पवन, अन्तरिक्ष, क्षेत्रज, सूर्य और चन्द्र अधिष्ठित हैं। इस संहिता में शिव के लोकप्रसिद्ध ‘अर्द्धनारीश्वर‘ रूप धारण करने की कथा बताई गई है। यह स्वरूप सृष्टि-विकास में ‘मैथुनी क्रिया’ के योगदान के लिए धरा गया था।
‘शिवपुराण’ की ‘शतरुद्र संहिता’ के द्वितीय अध्याय में भगवान शिव को अष्टमूर्ति कहकर उनके आठ रूपों शर्व, भव, रुद्र, उग्र, भीम, पशुपति, ईशान, महादेव का उल्लेख है। शिव की इन अष्ट मूर्तियों द्वारा पांच महाभूत तत्व, ईशान (सूर्य), महादेव (चंद्र), क्षेत्रज्ञ (जीव) अधिष्ठित हैं। चराचर विश्व को धारण करना (भव), जगत के बाहर भीतर वर्तमान रह स्पन्दित होना (उग्र), आकाशात्मक रूप (भीम), समस्त क्षेत्रों के जीवों का पापनाशक (पशुपति), जगत का प्रकाशक सूर्य (ईशान), धुलोक में भ्रमण कर सबको आह्लाद देना (महादेव) रूप है।
कोटिरुद्र संहिता : Kautirudra Sanhita
कोटिरुद्र संहिता में शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों का वर्णन है। ये ज्योतिर्लिंगों क्रमश: सौराष्ट्र में सोमनाथ, श्रीशैल में मल्लिकार्जुन, उज्जयिनी में महाकालेश्वर, ओंकार में अम्लेश्वर, हिमालय में केदारनाथ, डाकिनी में भीमेश्वर, काशी में विश्वनाथ , गोमती तट पर त्र्यम्बकेश्वर, चिताभूमि में वैद्यनाथ, सेतुबंध में रामेश्वर, दारूक वन में नागेश्वर और शिवालय में घुश्मेश्वर हैं। इसी संहिता में विष्णु द्वारा शिव के सहस्त्र नामों का वर्णन भी है।
साथ ही शिवरात्रि व्रत के माहात्म्य के संदर्भ में व्याघ्र और सत्यवादी मृग परिवार की कथा भी है। भगवान ‘केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग‘ के दर्शन के बाद बद्रीनाथ में भगवान नर-नारायण का दर्शन करने से मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे जीवन-मुक्ति भी प्राप्त हो जाती है।
इसी आशय की महिमा को ‘शिवपुराण’ के ‘कोटिरुद्र संहिता’ में भी व्यक्त किया गया है-
तस्यैव रूपं दृष्ट्वा च सर्वपापै: प्रमुच्यते।
जीवन्मक्तो भवेत् सोऽपि यो गतो बदरीबने।।
दृष्ट्वा रूपं नरस्यैव तथा नारायणस्य च।
केदारेश्वरनाम्नश्च मुक्तिभागी न संशय:।
इस संहिता में भगवान शिव के लिए तप, दान और ज्ञान का महत्त्व समझाया गया है। यदि निष्काम कर्म से तप किया जाए तो उसकी महिमा स्वयं ही प्रकट हो जाती है। अज्ञान के नाश से ही सिद्धि प्राप्त होती है।‘शिवपुराण’ का अध्ययन करने से अज्ञान नष्ट हो जाता है। इस संहिता में विभिन्न प्रकार के पापों का उल्लेख करते हुए बताया गया है कि कौन-से पाप करने से कौन-सा नरक प्राप्त होता है। पाप हो जाने पर प्रायश्चित्त के उपाय आदि भी इसमें बताए गए हैं।
उमा संहिता : Uma Sanhita
‘उमा संहिता‘ में देवी पार्वती के अद्भुत चरित्र तथा उनसे संबंधित लीलाओं का उल्लेख किया गया है। चूंकि पार्वती भगवान शिव के आधे भाग से प्रकट हुई हैं और भगवान शिव का आंशिक स्वरूप हैं, इसीलिए इस संहिता में उमा महिमा का वर्णन कर अप्रत्यक्ष रूप से भगवान शिव के ही अर्द्धनारीश्वर स्वरूप का माहात्म्य प्रस्तुत किया गया है।
कैलास संहिता : Kailash Sanhita
कैलास संहिता में ओंकार के महत्त्व का वर्णन है। इसके अलावा योग का विस्तार से उल्लेख है। इसमें विधिपूर्वक शिवोपासना, नान्दी श्राद्ध और ब्रह्मयज्ञादि की विवेचना भी की गई है। गायत्री जप का महत्त्व तथा वेदों के बाईस महावाक्यों के अर्थ भी समझाए गए हैं।
वायु संहिता : Vayu Sanhita
इस संहिता के पूर्व और उत्तर भाग में पाशुपत विज्ञान, मोक्ष के लिए शिव ज्ञान की प्रधानता, हवन, योग और शिव-ध्यान का महत्त्व समझाया गया है। शिव ही चराचर जगत् के एकमात्र देवता हैं। शिव के ‘निर्गुण’ और ‘सगुण’ रूप का विवेचन करते हुए कहा गया है कि शिव एक ही हैं, जो समस्त प्राणियों पर दया करते हैं। इस कार्य के लिए ही वे सगुण रूप धारण करते हैं। जिस प्रकार ‘अग्नि तत्त्व’ और ‘जल तत्त्व’ को किसी रूप विशेष में रखकर लाया जाता है, उसी प्रकार शिव अपना कल्याणकारी स्वरूप साकार मूर्ति के रूप में प्रकट करके पीड़ित व्यक्ति के सम्मुख आते हैं शिव की महिमा का गान ही इस पुराण का प्रतिपाद्य विषय है।
शिवपुराण सुनने का फल – Shiv Puran Hindi
शिवपुराण में वर्णन आया है कि जो भी श्रद्धा से शिव पुराण कथा का श्रवण करता है वह जन्म-मरण के बन्धन से मुक्त हो जाता है और भगवान शंकर के परम धाम को प्राप्त करता है। अन्य देवताओं की अपेक्षा भगवान शंकर जल्द ही प्रसन्न हो जाते हैं और थोड़ी सी पूजा का बहुत-बड़ा फल प्रदान करते हैं। एक बार भष्मासुर ने भगवान शंकर की तपस्या कर इच्छित वर माँग लिया कि मैं जिसके सिर पर हाथ रखुँ वह भष्म हो जाये। भगवान शंकर इतने भोले-भाले कि बिना सोचे-समझे उन्होंनें भष्मासुर को तथास्तु प्रदान किया।
भष्मासुर ने सोचा कि पहले शंकर जी को ही भष्म करके देखता हूँ। भष्मासुर भगवान शंकर के पीछे दौड़ पड़े। भगवान शंकर दौड़ते हुये भगवान विष्णु के पास जा पहुँचे। सो भगवान विष्णु ने मोहिनी स्वरूप धारण कर भष्मासुर का हाथ उसके अपने सिर पर रखवा कर भगवान शंकर की रक्षा की।
इसलिये भगवान शंकर की थोड़ी भी पूजा कर दी जाये तो वह प्रसन्न हो बहुत ज्यादा फल देते हैं। जो शिव पुराण की कथा श्रवण करते हैं उन्हें कपिला गायदान के बराबर फल मिलता है। पुत्रहीन को पुत्र, मोक्षार्थी को मोक्ष प्राप्त होता है तथा उस जीव के कोटि जन्म पाप नष्ट हो जाते हैं और शिव धाम की प्राप्ति होती है। इसलिये शिव पुराण कथा का श्रवण अवश्य करना चाहिये।
जो निरन्तर अनुसंधानपूर्वक इस शिवपुराण को बांचता है अथवा नित्य प्रेमपूर्वक इसका पाठमात्र करता है, वह पुण्यात्मा है –
इसमे संशय नहीं है। जो उत्तम बुद्धिवाला पुरुष अन्तकाल मे भक्तिपूर्वक इस पुराण को सुनता है, उस पर अत्यन्त प्रसन्न हुये भगवान महेश्वर उसे अपना पद (धाम) प्रदान करते हैं। जो प्रतिदिन आदरपूर्वक इस शिवपुराण का पूजन करता है, वह इस संसार मे सम्पूर्ण भोगों को भोगकर अन्त मे भगवान शिव के पद को प्राप्त कर लेता है। जो प्रतिदिन आलस्यरहित हो रेशमी वस्त्र आदि के वेष्टन से इस शिवपुराण का सत्कार करता है, वह सदा सुखी होता है।
यह शिवपुराण निर्मल तथा भगवान शिव का सर्वस्व है; जो इहलोक और परलोक मे भी सुख चाहता हो, उसे आदर के साथ प्रयत्नपूर्वक इसका सेवन करना चाहिये। यह निर्मल एवं उत्तम शिवपुराण धर्म, अर्थ, काम और मोक्षरूप चारों पुरुषार्थों को देने वाला है। अत: सदा प्रेमपूर्वक इसका श्रवण एवं विशेष पाठ करना चाहिये।
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शिवपुराण पूजा विधि : Shiv Puran Puja Vidhi
पूजा के दिन प्रात: स्नानादि नित्य कर्मों से निवृत होकर पवित्र हो जायें तत्पश्चात पूजास्थल पर भगवान शिव, माता पार्वती और नंदी को पवित्र जल अर्पित करें। शिवलिंग पर मिट्टी के बर्तन में पवित्र जल भरकर ऊपर से बिल्वपत्र, आक व धतूरे के पुष्प, चंदन, चावल आदि के साथ चढायें। यदि नजदीक कोई शिवालय न हो तो शुद्ध गीली मिट्टी से ही शिवलिंग बनाकर उसकी पूजा भी की जा सकती है। महाशिवरात्रि पर व्रत के साथ रात्रि जागरण करना चाहिये व शिवपुराण का पाठ सुनना चाहिये। अगले दिन सवेरे जौ, तिल, खीर और बिल्वपत्र का हवन करके व्रत को समाप्त करना चाहिये।
शिव पुराण से सम्बंधित प्रश्न – Shiv Puran FAQ
प्रश्न – शिवपुराण पूजा के दौरान किन बातों का ध्यान रखें ?
जो भी शिवपुराण कथा करता है उसे कथा प्रारंभ करने से एक दिन पहले ही व्रत रखने के लिये बाल, नाखून इत्यादि कटवा लेने चाहिये। क्योंकि कथा समाप्ति तक किसी भी प्रकार का क्षौर कर्म नहीं किया जाता। कथा सुनने वाले भी ध्यान रखें कि देर से पचने वाला अर्थात दाल, तला हुआ भोजन, मसूर, बासी अन्न आदि खाकर भी शिवपुराण को नहीं सुनना चाहिये।
कथा श्रोताओं को सबसे पहले कथा वाचक से दीक्षा ग्रहण करनी चाहिये। दीक्षा लेने के बाद ब्रह्मचर्य का पालन करना, जमीन पर सोना, पत्तल में खाना और प्रतिदिन कथा समाप्त होने के बाद ही भोजन करना चाहिये। शिवपुराण कथा का व्रत जो भी लेता है उसे दिन में एक ही बार जौ, तिल या चावल का भोजन ग्रहण करना चाहिये, जिसने सिर्फ कथा सुनने के लिये व्रत किया हो वह प्याज, लहसुन, हींग, गाजर, मादक वस्तुओं का सेवन न करे।
कथा करने वाला काम क्रोध से बचे, ब्राह्मण व साधु-संतो की निंदा भी उसे नहीं करनी चाहिये। गरीब, रोगी, पापी भाग्यहीनएवं नि:संतानों को शिवपुराण की कथा जरुर सुननी चाहिये। कथा समाप्ति को एक उत्सव के रुप में मनाना चाहिये भगवान शिव व शिवपुराण की पूजा करनी चाहिये, कथावाचक की पूजा कर उन्हें दान-दक्षिणा देकर संतुष्ट करना चाहिये। कथा सुनने आये ब्राह्मणों का भी आदर सत्कार कर उन्हें भी दान-दक्षिणा दी जानी चाहिये।
प्रश्न – शिव पुराण करवाने का शुभ मुहूर्त क्या है ?
शिव पुराण कथा करवाने के लिये सर्वप्रथम विद्वान ब्राह्मणों से उत्तम मुहुर्त निकलवाना चाहिये। शिव पुराण के लिये श्रावण-भाद्रपद, आश्विन, अगहन, माघ, फाल्गुन, बैशाख और ज्येष्ठ मास विशेष शुभ हैं। लेकिन विद्वानों के अनुसार जिस दिन शिव पुराण कथा प्रारम्भ कर दें, वही शुभ मुहुर्त है।
प्रश्न – शिव पुराण का आयोजन कहाँ करें ?
शिव पुराण करवाने के लिये स्थान अत्यधिक पवित्र होना चाहिये। जन्म भूमि में शिव पुराण करवाने का विशेष महत्व बताया गया है – जननी जन्मभूमिश्चः स्वर्गादपि गरियशी – इसके अतिरिक्त हम तीर्थों में भी शिव पुराण का आयोजन कर विशेष फल प्राप्त कर सकते हैं। फिर भी जहाँ मन को सन्तोष पहुँचे, उसी स्थान पर कथा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।
प्रश्न – शिव पुराण करने के नियम क्या है ?
शिव पुराण का वक्ता विद्वान ब्राह्मण होना चाहिये। उसे शास्त्रों एवं वेदों का सम्यक् ज्ञान होना चाहिये। शिव पुराण में सभी ब्राह्मण सदाचारी हों और सुन्दर आचरण वाले हों। वो सन्ध्या बन्धन एवं प्रतिदिन गायत्री जाप करते हों। ब्राह्मण एवं यजमान दोनों ही सात दिनों तक उपवास रखें। केवल एक समय ही भोजन करें। भोजन शुद्ध शाकाहारी होना चाहिये। स्वास्थ्य ठीक न हो तो भोजन कर सकते हैं।
प्रश्न – शिव पुराण में कितना धन लगता है ?
इस भौतिक युग में बिना धन के कुछ भी सम्भव नहीं एवं बिना धन के धर्म भी नहीं होता। पुराणों में वर्णन है कि पुत्री के विवाह में जितना धन लगे उतना ही धन शिव पुराण में लगाना चाहिये और पुत्री के विवाह में जितनी खुशी हो उतनी ही खुशी मन से शिव पुराण को करना चाहिये।
‘‘विवाहे यादष्शं वित्तं तादष्श्यं परिकल्पयेत’’
24 Comments
up puran ke rachita ka nam bhi ankit karwa dijiye!
Shiv puran ko hm Monday se start krskti hai? Mobile se kaise pdhe shiv puran , full likhi hue nhi milrhe merko toh , u tube se pdhne , sunne se better hota hai hum apne muh se khud pdhe , please bagwan shiv maa parvati mujhe mera pyar lota do uski sewa mujhe iss jivan m koi or ldka nhi chye hai,mere shaddi uski sewa kise or se mt hone dena usse acha ho ki m hi mrjau
Adbhudh …lekhika ka dhanywad… aap ki ruchi is parkar hi bani rahe
Hmare sath share karne k liye thanku
Kya hum khud se shiv puran nahi padh sakte kya sabhi niyomo ka pAlan aavasyak hai hame mobile se hi shiv puran padhna kya hum padh sakte h kripya utta dijiye
सच्ची श्रद्धा और विशवास को किसी आडम्बर की जरुरत नहीं, देश, काल, समय, परिस्थिति अनुकूल होने पर नियमानुसार पढ़ना उत्तम रहता है अन्यथा भगवान तो भाव के भूखे है |
bhut sundar baat kahi h aapne…Khud se shiv puran padne ke kya niyam h? kripya btaye.. shiv puran ki book kitne dino me puri padi jani chaiye? kya ham khud vrat karke shiv puran nhi padh sakte agar katha krane ka budget nhi ho to? kon sa shiv puran market se lena uchit rhega agar khud hi padna ho to? please btaye..
Ji m mobile se he shiv puran ki katha pad rahi hu
Shri shivay namahstubhyam
Katha yaad krne K liye acha hai mobile se study krna…. Lekin shrvan niymo K anusar hi kiya jata hai…🙏🙏
yah hindu shashtro ka amulya bhandar he
नागेंद्राय: त्रिलोचनाय: भस्मंकराग्य: महेश्वराय:
नित्याय: शुद्धयाय: दिगंबराय: तस्मेकराय: नम: शिवाय:
ऊँ नम: शिवाय:
I always feel some positive energy whenever I read about lord shiva and appreciate for your work Aaditi Deve, keep writing too
Aditi ji dhanyawaad shivpuran ki har ek jankari K liye apko saadar Naman
thanks mrinal ji ..keep reading and sharing
आपने शिवमहापुराण के माध्यम से जो जानकारी दी उसके लिए बहुत बहुत आभार. ओम नमह: शिवाय.
Om Namh Shivay
Om namha SHIVAY bahut Hi badhiya jankari Shiv puraan KI thanks aditi ji
अदिती जी आपने शिव पुराण की बहुत ही अच्छी जानकारी दी इसके लिए आपको कोटि कोटि धन्यवाद।
जय शिव शम्भू
Om Namah Shivay…Good Aaditi ji
thank you sir …keep reading and sharing
jai mere mahakaal i love my shiv puran khtha
ॐ
नमः शिवाय
So nice info on maha shiv Puran many thnx
thank you sir ..keep reading