कुण्डलिनी जागरण के लक्षण – Awakening of The Kundalini
कुण्डलिनी जागरण के लक्षण (Kundalini Awakening Symptoms) और कुण्डलिनी जागरण के चमत्कार जानने से पहले हमे उसके आध्यात्मिक लाभ का पता होना चाहिए लेकिन कुंडलिनी जागरण के आध्यात्मिक लाभ की अभिव्यक्ति शब्दो में तो नहीं की जा सकती, परन्तु इतना कह सकते है की कुण्डलिनी शक्ति जागरण (Awakening The Kundalini) के पश्चात एक पूर्ण आनंद की स्थिति होती है ! इस स्थिति को प्राप्त करने के बाद कुछ पाना शेष नही रह जाता ! मन में पूर्ण संतोष, पूर्णशांति व परमसुख होता है ! ऐसे साधक के पास बैठने से दूसरे व्यक्ति को भी शांति अनुभूति होती है ! ऐसे योगी पुरुष के पास बैठने से दूसरे विकासी पुरुष के भी विकार शांत होने लगते है तथा योग व भगवान के प्रति स्रद्धा भाव बढ़ते है
कुण्डलिनी जागरण के लक्षण – Kundalini Awakening Symptoms
इसके अतिरिक कुण्डलिनी शक्ति जिसकी जाग्रत (awakening of the kundalini) हो जाती है , उसके मुख पर एक दिव्य आभा, ओज, तेज व कान्ति बढ़ने लगती है ! शरीर पर भी लावण्य आने लगता है, मुख पर प्रसन्ता व समता का भाव होता है,दृष्टि में समता, करुणा व दिव्य प्रेम होते है ! विचारो में महानता व पूर्ण सात्विकता होती हे ! संक्षेप में हम कह सकते हे की जीवन का प्रतियक पहलु पूर्ण पवित्र उदात्त व महानता को छूता हुआ होता है |
इस पूरी प्रक्रिया के जहाँ spiritual लाभ है, वही एक लाभ अत्यधिक महत्वपूर्ण यह भी है की ऐसी योगिक प्रक्रिया करनेवाले व्यक्ति को जीवन में कोई रोग नहीं हो सकता है तथा कैंसर से लेकर हदयरोग, diabetes , मोटापा , पेट के समस्त रोग वात, पित, व कफ की समस्त विषमताएं स्वत: समाप्त हो जाती है ! व्यक्ति पूर्ण निरोगी हो जाता है ! आज के स्वार्थी व्यक्ति के लिए क्या यह कम उपलबधि है की बिना किसी दवा के सभी रोग मिटाये जा सकते है और जिंदगी भर निरोग, स्वस्थ, ओजस्वी, मनस्वी, तपस्वी बना जा सकता है |
ब्रह्म को जहाँ सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी और निर्विकार कहा जाता है वहाँ उसे मूढ़ भी कहा जाता है। मूढ़ का अर्थ है अज्ञानी गुम-सुम बैठा रहने वाला। उसकी न कोई इच्छा है न आकांक्षा ऐसा ब्रह्म विश्व के सृजन और पालन का उत्तरदायित्व भला कैसे पूरा कर सकता था। इसलिये उस जागृत करने की आवश्यकता पड़ी। इस आवश्यकता की पूर्ति उसकी शक्ति ने की। यह शक्ति या शिव तत्व और कुछ नहीं कुण्डलिनी ही है, वहीं ब्रह्म को क्रियाशील बनाती है। इस शास्त्रीय विवेचन की पुष्टि के लिये शरीरगत कुण्डलिनी तत्व का अध्ययन करना चाहिए।
मेरुदण्ड के भीतर सूक्ष्म प्रवाह और चैतन्य लोकों के निर्माण और उनके क्रिया कलाप का अध्ययन केवल भारतीय योगी ही कर सके हैं। इन सूक्ष्म लोकों का महत्व सर्वाधिक है। उनकी जानकारी से ही विश्व रहस्यों का उद्घाटन होता है। अलौकिक शक्तियाँ प्राप्त होती है, मनुष्य जीवन का वास्तविक अर्थ समझ में आता है और स्वर्ग, मुक्ति या परम पद प्राप्ति का द्वार खुलता है।
गुदा क्षेत्र में सोई हुई कुण्डलिनी दो धाराओं इड़ा और पिंगला (यह नाड़ियाँ ऋण विद्युत् और धन विद्युत् गत विद्युत् के आणविक स्वरूप में अन्तर है) में होकर ऊपर को उठती है और मस्तिष्क में जाकर मूढ़ ब्रह्म की चेतना को झकझोरती है। कुण्डलिनी यदि जागृत नहीं है तो इड़ा और पिंगला अपने सामान्य परिवेश में ही काम करती है, उसी प्रकार मस्तिष्क भी सामान्य ढीले-पोले काम करता रहता है पर जागृत कुण्डलिनी के आवेश को संभालना तो मस्तिष्क के लिये भी कठिन हो जाता है।
फिर वह बैठा नहीं रह सकता। कुछ न कुछ उछल-कूद तोड़-फोड़ बनाव शृंगार उसे करना ही पड़ता हैं। जिस व्यक्ति की कुण्डलिनी जाग जाती है वह जागृत अवस्था की तहत गम्भीर निद्रावस्था में भी उतना ही सचेतन रहता है। उसकी स्वप्न और जागृति में कोई अन्तर नहीं आता। जिस तरह जागृत अवस्था में वह किसी से बातचीत करता, सुनता, सोचता, विचारता, प्रेरणा देता, सहायता, सहयोग देता रहता है उसी प्रकार स्वप्नावस्था में भी उसकी गतिविधियाँ चला करती हैं।
उस अवस्था में वह किसी का भला भी कर सकता है और नई-नई जानकारियों के लिये अन्य ब्रह्माण्डों में सैर के लिये भी जा सकता है। अन्य ब्रह्माण्डों का अर्थ विद्धि रूप से सूर्य, चन्द्र, बृहस्पति, शुक्र, हर्शल, प्लूटो आदि से है। यह आश्चर्य लगने वाली बात उसके लिये बिल्कुल साधारण और सामान्य होती है। साधना में तीन व्यक्तियों को कभी कभी रात में ऐसे कुछ स्वप्न हो जाते हैं जिसमें उन्हें किसी भविष्य की घटना का पूर्वाभास मिल जाता है या किसी गोपनीय रहस्य का पता चल जाता है। वह कुण्डलिनी की ही शक्ति होती है।
यह भी जरूर पढ़े :
- आज्ञा-चक्र जाग्रत करने की विधि, योगासन, मन्त्र और प्राप्त होने वाली सिद्धिया और प्रभाव
- जानिए त्राटक द्वारा आज्ञाचक्र ध्यान साधना विधि और सावधानिया
- कुण्डलिनी शक्ति का भेद और जाग्रत करने के बीज मन्त्र
- अत्यंत सरल ध्यान योग (मैडिटेशन) विधि
- कुण्डलिनी चक्रों के प्रतीकात्मक वैदिक नाम तथा उपयोगिता और चक्र सोधन में प्राणमय कोष की भूमिका
हमारी धरती गोलाकार है उसके केन्द्र में अति गर्मी है जिससे वहाँ की सब वस्तुएँ और धातुएँ गली हुई तरल स्थिति में होती हैं। मूलाधार की वह गाँठ, जहाँ मेरुदण्ड समाप्त होता है और जिसे अनेक नाड़ी गुच्छकों ने बाँध रखा है, का भेदन किया जाय तो वहाँ अत्यन्त तेजस्वी और उष्ण शक्ति मिलती है, यही कुण्डलिनी है। वह स्फुरणा वाली शक्ति है इसलिये यहाँ नाड़ी गुच्छक भी स्फुरित से है चारों ओर को उत्तेजित से बने रहते हैं। यहाँ की अग्नि पृथ्वी में पाई जाने वाली अग्नि से बहुत कुछ मिलती जुलती होती है।
विज्ञान का एक नियम है कि एक पदार्थ के सभी अणुओं की चेष्टाएँ मूल पदार्थ जैसी ही होती हैं। उदाहरणार्थ लोहे में जो गुण और चेष्टा होगी वही उसके परमाणु में भी होगी। नमक में जो गुण और तत्व होंगे उसके परमाणु में भी वही होंगे। गुदा पार्थिव पदार्थों से बना हुआ होने के कारण उसके गुण, अहंकार और वासनायें भी पार्थिव होती हैं इसलिये शक्ति की दृष्टि से भी वह कुण्डलिनी की तरह ही महत्त्वपूर्ण होता है अर्थात् कुण्डलिनी का एक उपयोग केवल पार्थिव काम वासना-जन्य सुखों के लिये भी किया जा सकता है पर उस स्थिति में शक्ति अधोगामी होने से उसका पतन शीघ्र हो जाता है और ऐसे मनुष्य की वासनायें मृत्यु तक भी शान्त नहीं होती इसलिये उसे उनकी पूर्ति के लिये पुनः जीवन धारण करना पड़ता है।
लेकिन जब कुण्डलिनी जागृत हो जाती है और इड़ा, पिंगला समान गति से ऊर्ध्वगामी हो जाती हैं तो एक तीसरी धारा सुषुम्ना का आविर्भाव होता है। उससे ऊर्ध्वमुखी लोकों की अनुभूति और गमन का सुख मिलता है यह सुख संभोग सुख जैसा होता है पर संभोग का सुख क्षणिक होता है और ऊर्ध्वमुखी आध्यात्मिक सुख का रसास्वादन निरन्तर किया जा सकता है। पर उसके लिये कुण्डलिनी को जगाना आवश्यक हो जाता है।
कुण्डलिनी जगाने का अर्थ भीतर गोलों (7 chakra) की कुण्डलिनी को क्रियावान् करना है। पवित्रता के बिना इस कार्य में बड़ा जोखिम है। इसलिये उसे गुप्त रखा गया। कुण्डलिनी के दो उत्पत्ति स्थान माने गये हैं, एक सूर्य केन्द्र में निवास करने वाली पुरुषरूपी और दूसरी स्त्री रूप में पृथ्वी केन्द्र में। पृथ्वी केन्द्र में कुण्डलिनी को प्राणधारियों की जीवन सत्ता का केन्द्र कह सकते हैं। यह दरअसल सूर्य कुण्डलिनी का ही बीज है।
कहा जाता है कि संसार जो कुछ भी है वह सब बीज रूप से देह में विद्यमान् है सूर्य भी कुण्डलिनी के रूप में शरीर में बैठा हुआ है। शारीरिक मूलाधार में ग्रन्थि का जब विकास होता है तब उसमें सूर्य जैसी होती है। अर्थात् उसमें मनुष्य की शक्ति सूर्य की जितनी शक्ति वाली, सर्वव्यापी, सर्व-समर्थ हो जाती है फिर उस शक्ति का नियन्त्रण करना कठिन हो जाता है। कमजोर मन और शरीर वाले उस शक्ति (kundalini power) को धारण नहीं कर सकते।
गायत्री का देवता “सविता” है और कुण्डलिनी की प्रतिनिधि शक्ति भी सूर्य ही है इसलिये गायत्री उपासना का सीधा प्रभाव मेरुदण्ड से होकर इस गुदा क्षेत्र में ही होता है। ऊपर से उतरने वाला प्राण प्रवाह पहले यहीं पहुँचता है और फिर गुच्छकों के द्वारा सारे शरीर में संचित होता रहता है। जितना अधिक साधन का विकास होता है उतना ही प्राणशक्ति का अभिवर्द्धन और उसी अनुपात से कुण्डलिनी जागृत होती चलती है। यह प्रकाश धीरे-धीरे नेत्र, वाणी, मुख और ललाट आदि सम्पूर्ण शरीर में चमकने लगता है।
त्वचा में यही कोमलता और बुद्धि में सात्विकता एवं पवित्रता की अभिवृद्धि करता है। यह क्रिया धीरे-धीरे होती है इसलिये हानि की भी आशंका नहीं रहती उपासक अपने आत्म-कल्याण भर के संकेत प्राप्त करता हुआ जो वास्तविक लक्ष्य है वह जीवन -मुक्ति भी प्राप्त कर लेता हैं।
सविता लोक से आने वाले प्राणकण यद्यपि बहुत छोटे होते हैं किन्तु इतने प्रकाशमय होते है कि बिना दिव्य-दृष्टि के भी उन्हें देखा जा सकता है। आसमान की ओर देखने पर वायु में छोटे-छोटे प्रकाश के कण अति शीघ्रता से चारों ओर उछलते हुए दिख पड़ते हैं ये प्राणकण ही हैं। यह कण सात ईश्वर कणों से विनिर्मित होता है। यह प्राण कण सफेद होता है पर ईश्वर के सातों अणु सात रंगों के बने होते हैं। सूर्य भी सात रंगों का प्रकाश है।
नाभि चक्र में घुसने पर यह रंग अलग-अलग होकर अपने क्रिया क्षेत्रों में बँट जाते हैं नीला और लाल रंग मिली हुई हल्की बैगनी (वायलेट) और नीली किरणें कंठ में चली जाती हैं और हल्की नीली कण्ठ चक्र में। यह दोनों गले को शुद्ध रखती हैं और वाणी को मधुर बनाती हैं। कासनी और गहरा नीला मस्तिष्क में चले जाते हैं उससे विचार, भक्ति और वैराग्य के गुणों का आविर्भाव होता है। गहरा नीला मगज के निचले और मध्य भाग तथा नीला रंग सहस्रार का पोषण करता है।
पीली किरणें हृदय में प्रवेश करती है उससे रक्तकणों की शक्ति और स्निग्धता बढ़ती है। शरीर सुन्दर बनता है। यही किरणें बाद में मस्तिष्क को चली जाती हैं जिससे विचार और भावनाओं का समन्वय होता है। हरी किरणें पेट की अन्तड़ियों में कार्य करती हैं इससे पाचन क्रिया सशक्त बनती है। गुलाबी किरणें ज्ञान तन्तुओं के साथ सारे शरीर में फैलती है आरोग्य की दृष्टि से इन किरणों का बड़ा भारी महत्व है ऐसी की बहुतायत वाला व्यक्ति किसी को भी हाथ रखकर स्वस्थ कर सकता है।
देवदारु और यूकेलिप्टस वृक्षों में इन किरणों की ही बहुतायत होती है जिससे उनकी छाया भी बहुत आरोग्यवर्धक होती हैं। नारंगी लाल किरणें जननेन्द्रियों तक पहुँचकर गुदा वाले रोग ठीक कर देती हैं और शरीर की गर्मी में सन्तुलन रखती हैं। हलकी बैंगनी किरणें भी यहाँ आकर इस क्रिया में हाथ बँटाती हैं यदि कामवासना पर नियन्त्रण रखा जा सके तो इन किरणों को ही मस्तिष्क में भेजकर भविष्य ज्ञान, दूर दर्शन, दर श्रवण आदि चमत्कार, प्राप्त किये जा सकते हैं।
शुद्ध पीले रंग से बुद्धि का विकास होता है। गहरा लाल किरमिजी (क्रिमसन) से सर्वात्म भाव और प्रेमभाव का विकास होता है। इन रंगों की सम्मिलित शक्ति से आध्यात्मिकता का विकास होता हैं। इस तरह यह देखने में आता है कि कुण्डलिनी जागरण से आन्तरिक कलेवर का आमूल-चूल परिवर्तन हो जाता है। इस क्रान्ति का माध्यम शरीरस्थ कुण्डलिनी को सूर्य कुण्डलिनी से जोड़ देना ही होता है। यह क्रिया वैसे ही है जैसे किसी बड़े तालाब से छोटी सी नाली लगाकर खेतों तक पानी पहुँचा देते हैं। कुण्डलिनी जागरण की यह साधना समय साध्य तो है पर जोखिम नहीं है।
कुंडलिनी चक्र जागरण में दिखने वाले रंगों का अर्थ | Kundalini 7 Chakra’s Colors
साधकों को ध्यान के दौरान कुछ एक जैसे एवं कुछ अलग प्रकार के अनुभव होते हैं. अनेक साधकों के ध्यान में होने वाले अनुभव एकत्रित कर यहाँ वर्णन कर रहे हैं ताकि नए साधक अपनी साधना में अपनी साधना में यदि उन अनुभवों को अनुभव करते हों तो वे अपनी साधना की प्रगति, स्थिति व बाधाओं को ठीक प्रकार से जान सकें और स्थिति व परिस्थिति के अनुरूप निर्णय ले सकें.
भौहों के बीच आज्ञा चक्र (Aagya chakra) में ध्यान लगने पर पहले काला और फिर नीला रंग दिखाई देता है. फिर पीले रंग की परिधि वाले नीला रंग भरे हुए गोले एक के अन्दर एक विलीन होते हुए दिखाई देते हैं. एक पीली परिधि वाला नीला गोला घूमता हुआ धीरे-धीरे छोटा होता हुआ अदृश्य हो जाता है और उसकी जगह वैसा ही दूसरा बड़ा गोला दिखाई देने लगता है. इस प्रकार यह क्रम बहुत देर तक चलता रहता है. साधक यह सोचता है इक यह क्या है, इसका अर्थ क्या है ? इस प्रकार दिखने वाला नीला रंग आज्ञा चक्र का एवं जीवात्मा का रंग है. नीले रंग के रूप में जीवात्मा ही दिखाई पड़ती है. पीला रंग आत्मा का प्रकाश है जो जीवात्मा के आत्मा के भीतर होने का संकेत है.
इस प्रकार के गोले दिखना आज्ञा चक्र के जाग्रत होने का लक्षण है. इससे भूत-भविष्य-वर्तमान तीनों प्रत्यक्षा दीखने लगते है और भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं के पूर्वाभास भी होने लगते हैं. साथ ही हमारे मन में पूर्ण आत्मविश्वास जाग्रत होता है जिससे हम असाधारण कार्य भी शीघ्रता से संपन्न कर लेते हैं.
कुण्डलिनी जागरण का अनुभव | kundalini awakening experiences
कुण्डलिनी वह दिव्य शक्ति है जिससे सब जीव जीवन धारण करते हैं, समस्त कार्य करते हैं और फिर परमात्मा में लीन हो जाते हैं. अर्थात यह ईश्वर की साक्षात् शक्ति है. यह कुदालिनी शक्ति सर्प की तरह साढ़े तीन फेरे लेकर शारीर के सबसे नीचे के चक्र मूलाधार चक्र में स्थित होती है. जब तक यह इस प्रकार नीचे रहती है तब तक हम सांसारिक विषयों की ओर भागते रहते हैं. परन्तु जब यह जाग्रत होती है तो उस समय ऐसा प्रतीत होता है कि कोई सर्पिलाकार तरंग है जिसका एक छोर मूलाधार चक्र पर जुदा हुआ है और दूसरा छोर रीढ़ की हड्डी के चारों तरफ घूमता हुआ ऊपर उठ रहा है. यह बड़ा ही दिव्य अनुभव होता है. यह छोर गति करता हुआ किसी भी चक्र पर रुक सकता है.
जब कुण्डलिनी जाग्रत होने लगती है तो पहले मूलाधार चक्र (Muladhar Chakra) में स्पंदन का अनुभव होने लगता है. यह स्पंदन लगभग वैसा ही होता है जैसे हमारा कोई अंग फड़कता है. फिर वह कुण्डलिनी तेजी से ऊपर उठती है और किसी एक चक्र पर जाकर रुक जाती है. जिस चक्र पर जाकर वह रूकती है उसको व उससे नीचे के चक्रों को वह स्वच्छ कर देती है, यानि उनमें स्थित नकारात्मक उर्जा को नष्ट कर देती है. इस प्रकार कुण्डलिनी जाग्रत होने पर हम सांसारिक विषय भोगों से विरक्त हो जाते हैं और ईश्वर प्राप्ति की ओर हमारा मन लग जाता है. इसके अतिरिक्त हमारी कार्यक्षमता कई गुना बढ जाती है. कठिन कार्य भी हम शीघ्रता से कर लेते हैं.
कुण्डलिनी जागरण के चमत्कार | Awakening The Kundalini
कुण्डलिनी जागरण के सामान्य लक्षण हैं : ध्यान में ईष्ट देव का दिखाई देना या हूं हूं या गर्जना के शब्द करना, गेंद की तरह एक ही स्थान पर फुदकना, गर्दन का भाग ऊंचा उठ जाना, सर में चोटी रखने की जगह यानि सहस्रार चक्र पर चींटियाँ चलने जैसा लगना, कपाल ऊपर की तरफ तेजी से खिंच रहा है ऐसा लगना, मुंह का पूरा खुलना और चेहरे की मांसपेशियों का ऊपर खींचना और ऐसा लगना कि कुछ है जो ऊपर जाने की कोशिश कर रहा है.
एक से अधिक शरीरों का अनुभव होना –
कई बार साधकों को एक से अधिक शरीरों का अनुभव होने लगता है. यानि एक तो यह स्थूल शरीर है और उस शरीर से निकलते हुए २ अन्य शरीर. तब साधक कई बार घबरा जाता है. वह सोचता है कि ये ना जाने क्या है और साधना छोड़ भी देता है. परन्तु घबराने जैसी कोई बात नहीं होती है.
एक तो यह हमारा स्थूल शरीर है. दूसरा शरीर सूक्ष्म शरीर (मनोमय शरीर) कहलाता है तीसरा शरीर कारण शारीर कहलाता है. सूक्ष्म शरीर या मनोमय शरीर भी हमारे स्थूल शरीर की तरह ही है यानि यह भी सब कुछ देख सकता है, सूंघ सकता है, खा सकता है, चल सकता है, बोल सकता है आदि. परन्तु इसके लिए कोई दीवार नहीं है यह सब जगह आ जा सकता है क्योंकि मन का संकल्प ही इसका स्वरुप है. तीसरा शरीर कारण शरीर है इसमें शरीर की वासना के बीज विद्यमान होते हैं. मृत्यु के बाद यही कारण शरीर एक स्थान से दुसरे स्थान पर जाता है और इसी के प्रकाश से पुनः मनोमय व स्थूल शरीर की प्राप्ति होती है अर्थात नया जन्म होता है. इसी कारण शरीर से कई सिद्ध योगी परकाय प्रवेश में समर्थ हो जाते हैं.
कुंडलिनी शक्ति को जगाने का सबसे अच्छा तरीका है साधना या शक्तिपात.
कुण्डलिनी जागरण साधना – Kundalini Yoga
अगर आप साधना के जरिये अपनी कुंडलिनी शक्ति को जाग्रत (awakening kundalini) करना चाहते है तो उसके लिएय आपको योग के मार्ग का अनुसरण करते हुये कर्मयोग, भक्तियोग, हठयोग और गुरुकृपायोग को साधना पड़ता है. साथ ही आपको प्राणायाम, यौगिक क्रियाओं और ब्रह्मचर्य का पालन भी करना होता है. इन सब नियमों के पालन के अलावा आपमें अनुशासन, धैर्य और सहनशीलता का होना भी अति आवश्यक है.
कुण्डलिनी जागरण शक्तिपात – Kundalini Shaktipaat
ये एक योग है जिसके जरियें आपको एक व्यक्ति के द्वारा दुसरे व्यक्ति को आध्यात्मिक शक्ति दी जाती है. सीधे शब्दों में कहें तो एक गुरु अपने शिष्य को अपनी आध्यात्मिक शक्ति देकर उसकी कुंडलिनी शक्ति जागरण में सहायक होता है. शक्ति को शिष्य तक पहुँचाने के लिए गुरु कुछ मन्त्रों का या पवित्र शब्दों का इस्तेमाल करता है, इस दौरान वो अपने नेत्रों को बंद रखता है और शिष्य को स्पर्श कर उसके आज्ञाचक्र में अपनी शक्ति को डालता है. इस प्रकार गुरु अपने योग्य शिष्य पर अपनी कृपा दीखता है. गुरु द्वारा दी गई इस शक्ति का प्रयोग कर शिष्य आसानी से अपनी कुंडलिनी शक्ति को जाग्रत करने में सफल हो पाता है.
कुंडलिनी शक्ति का जागरण (awakening kundalini) मात्र आध्यात्मिक प्रगति से ही संभव है जिसके सरल और सही मार्ग है साधना, आप साधना के जरिये ही अपनी कुंडलिनी शक्ति को जाग्रत करें, जिसके लिए आप साधना के 6 मूलभूत तत्वों को जरुर ध्यान में रखें. ये 6 तत्व आपके मार्ग को सरल बनाते है. किन्तु जब गुरु द्वारा शक्तिपात किया जाता है तो इससे शिष्य के पास एकदम से अचानक आध्यात्मिक शक्ति आ जाती है और वो इस आनंदमयी अनुभव को जीने लगता है. इसके अलावा अब उसे सिर्फ गुणात्मक और संख्यात्मक स्तर में इजाफा कर उसे कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने की दिशा में अग्रसर होना होता है. इससे साधक का विश्वास भी मजबूत होता है.
कहा जाता है कि अगर कोई साधक भक्तिमार्ग के जरिये अपनी कुंडलिनी शक्ति को जागृत करता है तो उसका भाव जागृत होता है और यदि वो ज्ञानमार्ग से कुंडलिनी शक्ति को जागृत करता है तो उससे उसे दिव्या ज्ञान की अनुभूति होती है.
39 Comments
KUNDALINI JAGAO YAAR TUMLOG ABHI TAK JAGA NEHI PAYE..ABHYAS .DHARJA .SABDHANI. BISWAS. AUR REGULAR YE SAB HONA CHAHIYE TAB KOYIBHI KUNDALINI JAGA SAKTI HAI
I don’t know what I’m experienced from last 2 years..at night blue Shakti poonj above me in room I seen…more than 30 times in past year.
Pls tell me what’s it
Your Comment poonam ji apne sadi ki hai
Om namah shivaye…
SATYA VACHAN.
SITARAM JAI JAI RAM
I am doing meditation since long time, a few symptoms I feel in these days, one of them is that, in dreams suddenly my body is become very light get up from floor and flying very speedy. I feel very good and excitement at that time, it for only maximum 30-40 seconds.
after wake up i feel very nice. may it be the symbol of kundalini jagran.
Thank you for contacting us, as you said that these are all in dreams, and this can not be a basis to be ahead of you in this area, maybe you are thinking more than necessary, about this
🕉️मै तत्व की साधना मे हूँ
और एक ज्ञान संग स्थान चाहूंगा
ताकि पृथ्वी पर पुनः अध्यात्म जाग्रति हो सके।
तत्सत
मैसेज 9818746602: सम्पर्क
सहयोग और कृत्य दोनों के लिए आभार
साधतत्व कार्य कर रहे है
Dear admin please btaiye ki kundlini sirf meditation aur mantra ka jaap krnese jagrut ho jaati he kya
hamari is post ko padhe – https://bhaktisanskar.com/kundalini-shakti-hindi/
Is ka jagran itna saral nhi mitra pahale ap ko ek mahine take din mein do ghante phir agle mahine ke liye char ghante phir agle mahine ke liye 6 ghante …..
Ab kiske liye ek book hai kiske Nam kundlini tantra by swami sathyananda
I have experienced everything and it happened when I was unaware of all this stuff and process. Simply I was continued in deep meditation. Through the symptoms and experience I searched and later I found all the details. I have details of every moments in my daily diary and it’s beyond the words.
Email – [email protected]
Whatssup no 9405508105
अादिती देव, मूझे नही पता कि यह आप ने कहाँ से लिखा है, लेकिन क्या आप जानती हो किसी एेसे व्यक्ति के बारे में जिसके साथ बिल्कूल ऐसा सबकूछ हूअा हो, जैसाकि आपने ऊपर बताया है, कोई सबूत है, आपके पास इसका? शायद नही होगा, क्योकि आपने भी वही किया जो सभी करते हैं, आप ने कही न कहीं से इसको पढ़कर या सूनकर या देखकर इसको यहाँ पर लिख दिया। आप और हम सभी जानते है, कि आज सभंव है ही नही, अगर होता तो कोई न कोई तो होता जिसकी कूण्डलनी जाग्रत हूई होती। लगभग आधे से ज्यादा आज के यौग करने वाल कभी न कभी यह जरूर कर ही लेते होगें की कूण्डलनी हमें भी जगानी है, मैं इसका विरोध नही कर रहा हूँ । इस लिये कह रहूं कि अभी तक मूझे कोई भी “Spiritual Human”नही मिला जिसके साथ यह हो चुका है? यदि आपको मिला हो तो मूझे बताइये, मैं उन कह रहा हूँ जो मेरी टिप्पणी पढ़ रहे है। बताइये यार मेरे को भी मैं 5सालों से इस पर Research कर रहा हूँ। मैं जानना चाहता हूँ उस व्यक्ति के बारे में जिसकी कण्डलनी जाग्रत हो चुकी है।
आपका अनुमान सही है कुण्डलिनी जागरण की यह पोस्ट हमने बिना कुण्डलिनी चक्र जाग्रत किये ही लिखी है परन्तु हमने कई प्रमाणित पुस्तक और वीडियो को देखने के बाद इस पोस्ट को लिखा है और अभ्यास करते हुवे इसे महसूस भी किया है की हम गलत नहीं कर रहे है, यह हमे सही रास्ता लगता है |
रही बात ऐसे व्यक्ति की जिसकी कुण्डलिनी जाग्रत हो चुकी है .. तो इसका तो कोई ढिंढोरा नहीं पिटेगा यह तो उस व्यक्ति के पास जाने पर स्वयं ही पता चल जायेगा की कुछ तो विशेष है अमुक व्यक्ति मे, फिर आपकी पात्रता ही काम आएगी, अगर मै अपनी बात करू तो आप एक बार जोधपुर-जैसेलमेर मार्ग पर शेखाला गांव में श्री दादा दरबार धाम है वह के दादाजी अर्थात गुरु जी श्री हंसराज जी महाराज के चमत्कार मेने स्वयं २ बार अच्छे से महसूस किये है, जिसमे उन्होंने मेरी मन में चल रहे प्रश्न का मेरे बिना बोले ही उत्तर दे दिया और जब मेने गलती करि और उनसे मन ही मन दूर बैठे विनती करि तो मुझे उस मुसीबत से निकाल कर ..वापस मिलने पर हिदायत भी दे दी की मुझे आगे से ये नहीं करना चाहिए .. अब मनो तो चमत्कार वरना संयोग …
its true and please contact me 7693058136…mujhe pure anubhave ho chuke h kudalini jagrat k jab chahe contact kr skate h aap ya whataap bhi kar skte h aap
Maine dekha jiski kundalini shakti jagrut hui he but, mai ak baat kehana Chahunga ki without guidance kundalini shakti jagrut mat karna bcz maine dekha he ki jo mera friend he usne without guidance ye try kiya or uska side effects huwa or aaj wo mentally sayko ho chuka he. Or ye baat ko jyada din bhi nahi ho chuke to sirf 4 din ho chuke he
kundalini chakra activation process should be start in experts supervision and we also support that …this post is giving only important information about kundalini
Kya grahasthi me rahkar kundali jagran aur uska sahastrar shiv me milan hona ye sab sambhav ho sakta hai aur vo kaise hoga please answer me..
वेदो में गृहस्थ आश्रमी को सबसे उच्च कोटि का तप करने वाला बताया गया है, सामाजिक और पारिवारिक कर्तव्यों का निर्वाह करते हुवे तप करना या साधना करना कई अधिक कठिन और फलकारी बताया गया है बनिस्पत जिम्मेदारियों से विमुख हो साधना करने के, अतः कुण्डलिनी जागरण साधना हो यो कोई अन्य गृहस्थी के लिए सरल तो नहीं परन्तु श्रेष्ठ जरूर है, और शिव को पाने के लिए भक्ति मार्ग ज्यादा उपर्युक्त है, अगर किसी प्रकार की देवीय शक्ति की अभिलाषा नहीं हो तो |
Mai bhi kundalini jagrit kr ra hu, prr bina kisi expert k kyu ki mere andrr bahut hi zyada andruni Shakti hh, bahut gazab ki iccha shakti hh, mai swayam ka guru hu aur mahadev mere param guru hnn, mai rozana unn ki pooja karta hu, mantra jaap ta hu poore junoon k saath. Man bahut pavitr hh, is liye mujhe kuchh nyi ho skta
Thanks for lot of Knowledge !!
This is same has been happened with me , Pl let me know why Tears are continuously are coming from my eyes?
Pl reply thru e-mail: [email protected]
.guru.. jivant kitab hai ..
Muladhar me spandan hone ke kitne samay Baad kundalini ho Sakti hai ?
jesa ki humne bataya ki muladhar pratham chakra hai or us jagah spandan uski jagrati ki or ingit karta hai parntu sampoorn kundalini chakra ko jagrat karne ka koi nischit smay nahi hai isme varsho bhi lag skate hai or kathin tapsya or ekagrata se kuch hi mahino or varsh mai bhi sambhavit hai
Kya kundali jagran hone ke baad m karmyog kr sakta hu kya
Iske baad hm apne vevek se kam kr sakte h ya nhi khi hamare ko सिदीया Paresan to nhi kr ti h ??
kya Exmpal ke liy koi bhi esa H jinki kundali jagran hui ho
isme सावघानिया Kya kya h jagran ke baad
kundalini jagran hone ke baad apko sare ans swayam hi mil jaenge
Bohat achha laga. Kripeya kundalini awaiking process batayenge.
apka uttar humne isi post me diya hai
Very effective knowledge about the Kundalini. Some questions of me are cleared in it.
thanks lalit ji ..keep connecting and sharing
thank u so much
It’s for important for human life but much difficult that’s why its nicest to practice and knowledge
very much satisfied with explanation of kundli jagran.
what ever word has been despalay in this above block,from where this has been taken or it is exprience of any one. I want please madeitclear. I am veary eager to know.
As such what writen is true or folce. pleasegiveme detail.
Thanks & Regards
Manoj
Very good information
its superb and highly informative information but want to get a guru. because there is a saying that where is a will there is a will but …………. without guru nothing is impossible.
thanks
pankaj verma