कुबेर यंत्र – Kuber Yantra
पुराणों के अनुसार राजाधिराज कुबेर समस्त यक्षों, गंधर्वों और किन्नरों के स्वामी कहे गये हैं। धनाध्यक्ष कुबेर देव नवनिधियों- पद्म, महापद्म, शंख, मकर, कच्छप, मुकुंद, कुंद, नील और वर्चासु के स्वामी है। पुराणों के अनुसार एक निधि भी अनन्त वैभवों की प्रदाता मानी गयी है और राजाधिराज कुबेर तो समस्त गुप्त, प्रकट संसार के समस्त निधियों वैभवों के देवता हैं। कुबेर देवताओं के धनाध्यक्ष के रूप में विशेष प्रसिद्ध हैं। महाभारत में भी कहा गया है कि महाराज कुबेर के साथ, भार्गव-शुक्र तथा धनिष्ठा नक्षत्र भी दिखलायी पड़ते हैं। इन तीनों की पूर्ण कृपा हुए बिना अनंत सुख एवं वैभव की प्राप्ति नही होती हैं। इसलिये इन वैभवों के लिये इन तीनों की संयुक्त उपासना का विधान विहित हैं।
कुबेर मन्त्र – Kuber Mantra
ॐ श्रीं ॐ हीं श्रीं हीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नम: ॥
ऊँ यक्षाय कुबेराय वैश्रणवाय धनधान्यादिपतयेधनधान्यसमृद्धिमें देहि देहि दापय दापय स्वाहा।।
पितामह ब्रह्मा की आज्ञा से कुबेर देव त्रिकूट पर्वत पर विश्वकर्मा देव द्वारा स्वर्ण निर्मित अद्दितीय लंका नगरी में हर्ष पूर्वक निवास करने लगे । कुबेर देव भगवान शंकर के परम भक्त थे , इनकी घोर तपस्या से प्रसन्न होकर प्रभु शिवजी ने इनको अपना मित्र का स्थान दिया और अलकापुरी में रहने की आज्ञा दी । महाराज कुबेर का स्वरूप एवं उनकी उपासना से संबंधित मंत्र, यंत्र, ध्यान एवं उपासना आदि की सारी प्रक्रियाएं श्रीविधार्णव , मंत्रमहार्णव, मंत्रमहोदधि, श्रीतत्त्वनिधि तथा विष्णुधर्मोत्तरादि पुराणों में निर्दिष्ट हैं।
तदनुसार इनके अष्टाक्षर, षोडशाक्षर तथा पंचत्रिंशाक्षरात्मक छोटे-बड़े अनेक मंत्र प्राप्त होते हैं। इनके एक मुख्य ध्यान श्लोक में इन्हें मनुष्यों के द्वारा पालकी पर अथवा श्रेष्ठ पुष्पक विमान पर विराजित दिखाया गया है। समस्त निधियां इनके साथ मूर्तिमान् आभूषणों से विभूषित है। इनके एक हाथ में श्रेष्ठ गदा तथा दूसरे हाथ में प्रचुर धन प्रदान करने की वरमुद्रा सुशोभित है। ये उन्नत उदरयुक्त, स्थूल शरीर वाले हैं। ऐसे भगवान् शिव के परम सुहृद् भगवान् कुबेर का ध्यान करना चाहिये।
अन्य सभी मंत्रों से भिन्न, कुबेर मंत्र को दक्षिण की और मुख करके साधने की परंपरा है। इस कुबेर यंत्र के विधिवत पूजन एवं कुबेर मन्त्र के शास्त्रानुसार पूजन, जप, अर्चन, ध्यान, उपासना से मनुष्यों के सभी दुःख दरिद्र अवश्य ही दूर होते है और भगवन शिव के परम मित्र होने के कारण इनकी समस्त संकटों से रक्षा होती है। यह यंत्र और मंत्र जीवन की सभी श्रेष्ठता को देने वाला समस्त सुख सौभाग्य, ऐश्वर्य, लक्षमी, दिव्यता, पद प्राप्ति, सुख सौभाग्य, व्यवसाय वृद्धि, सन्तान सुख, उत्तम स्वास्थ्य, आयु वृद्धि, और समस्त भौतिक सुखों को देने में निश्चय ही समर्थ है।
3 Comments
Very nice Mission . Be blessed.
I want to learn about Indian way of teaching in modern context.
thanks sir, keep reading, sharing and suggesting