ज्ञानयोग क्या है – What Is Gyan yoga
ज्ञानयोग से तात्पर्य है – ‘विशुद्ध आत्मस्वरूप का ज्ञान’ या ‘आत्मचैतन्य की अनुभूति’ है। इसे उपनिषदों में ब्रह्मानुभूति भी कहा गया है। और यह भी कहा गया है की –
“ऋते ज्ञानन्न मुक्तिः”
ज्ञान के विना मुक्ति संभव नहीं है –
ज्ञानयोग के साहित्य में उपनिषत्, गीता, तथा आचार्य शंकर के अद्वैत परक ग्रन्थ तथा उन पर भाष्यपरक ग्रन्थ हैं। इन्हीं से ज्ञान योग की परम्परा दृढ़ होती है। आधुनिक युग में विवेकानन्द आदि विचारकों के विचार भी इसमें समाहित होते हैं।
ज्ञानयोग का स्वरूप
ज्ञानयोग दो शब्दों से मिलकर बना है – “ज्ञान” तथा “योग”। ज्ञान शब्द के कई अर्थ किये जाते हैं –
- लौकिक ज्ञान – वैदिक ज्ञान,
- साधारण ज्ञान एवं असाधारण ज्ञान,
- प्रत्यक्ष ज्ञान – परोक्ष ज्ञान
किन्तु ज्ञानयोग में उपरोक्त मन्तव्यों से हटकर अर्थ सन्निहित किया गया है। ज्ञान शब्द की उत्पत्ति “ज्ञ” धातु से हुयी है, जिससे तात्पर्य है – जानना। इस जानने में केवल वस्तु (Object) के आकार प्रकार का ज्ञान समाहित नहीं है, वरन् उसके वास्तविक स्वरूप की अनुभूति भी समाहित है। इस प्रकार ज्ञानयोग में यही अर्थ मुख्य रूप से लिया गया है।
ज्ञानयोग में ज्ञान से आशय अधोलिखित किये जाते हैं –
- आत्मस्वरूप की अनुभूति
- ब्रह्म की अनूभूति
- सच्चिदानन्द की अनुभूति
- विशुद्ध चैतन्य की अवस्था
ज्ञानयोग के दार्शनिक आधार
ज्ञानयोग जिस दार्शनिक आधार को अपने में समाहित करता है, वह है ब्रह्म (चैतन्य) ही मूल तत्त्व है उसी की अभिव्यक्ति परक समस्त सृष्टि है। इस प्रकार मूल स्वरूप का बोध होना अर्थात् ब्रह्म की अनूभूति होना ही वास्तविक अनुभूति या वास्तविक ज्ञान है। एवं इस अनुभूति को कराने वाला ज्ञानयोग है।
व्यक्ति परमात्मा को ज्ञान मार्ग से पाना चाहता है । वह इस संसार की छोटी-छोटी वस्तुओं से सन्तुष्ट होने वाला मनुष्य नहीं है । अनेक ग्रन्थों के अवलोकन से भी उसे सन्तुष्टि नहीं मिलती । उसकी आत्मा सत्य को उसके प्रकृत रूप में देखना चाहती है और उस सत्य-स्वरूप का अनुभव करके, तद्रूप होकर, उस सर्वव्यापी परमात्मा के साथ एक होकर सत्ता के अन्तराल में समा जाना चाहती है । ऐसे दार्शनिक के लिए तो ईश्वर उसके जीवन का जीवन है, उसकी आत्मा की आत्मा है । ईश्वर स्वयं उसी की आत्मा है । ऐसी कोई अन्य वस्तु शेष ही नहीं रह जाती, जो ईश्वर न हो
ज्ञानयोग की विधि
विवेकानन्द के अनुसार ज्ञानयोग के अन्तर्गत सबसे पहले निषेधात्मक रूप से उन सभी वस्तुओं से ध्यान हटाना है जो वास्तविक नहीं हैं, फिर उस पर ध्यान लगाना है जो हमारा वास्तविक स्वरूप है – अर्थात् सत् चित् एवं आनन्द।
ज्ञान योग में ब्रह्म वाक्य
उपनिषदों में इसे ब्रह्म वाक्य कहा गया है। इसके अन्तर्गत ब्रह्मवाक्यों श्रवण, मनन तथा निदिध्यासन को कहा गया है।
- श्रवण (उपनिषदों में कही गयी बातों को सुनना या पढ़ना)
- मनन (श्रवण किये गये मन्तव्य पर चिन्तन करना
- निदिध्यासन (सभी वस्तुओं से अपना ध्यान हटाकर साक्षी पक्षी की तरह बन जाना, स्वयं को तथा संसार को ब्रह्ममय समझने से ब्रह्म से एकत्व स्थापित हो जाता है )
ये ब्रह्म वाक्य प्रधान रूप से चार माने गये हैं –
- अयमात्मा ब्रह्म
- सर्वं खल्विदं ब्रह्म
- तत्त्वमसि
- अहं ब्रह्मस्मि
गुरु मुख से इनके श्रवण के अनन्तर इनके वास्तविकर अर्थ की अनुभूति ही ज्ञानयोग की प्राप्ति कही गयी है।
श्रीमद भगवत गीता के अनुसार योग
गीता का मुख्य उपदेश योग है इसीलिए गीता को योग शास्त्र कहा जाता है। जिस प्रकार मन के तीन अंग हैं- ज्ञानात्मक, भावात्मक और क्रियात्मक। इसीलिए इन तीनों अंगों के अनुरूप गीता में ज्ञानयोग, भक्तियोग, और कर्मयोग का समन्वय हुआ है।
आत्मा बन्धन की अवस्था में चल जाती है। बन्धन का नाश योग से ही सम्भव है। योग आत्मा के बन्धन का अन्त कर उसे ईश्वर की ओर मोड़ती है। गीता में ज्ञान, कर्म और भक्ति को मोक्ष का मार्ग कहा है। इस प्रकार गीता ज्ञानयोग, भक्तियोग और कर्मयोग का सम्भव होने के कारण योग की त्रिवेणी कही जाती है।
श्रीमद भगवत गीता के अनुसार ज्ञानयोग
गीता के अनुसार मानव अज्ञानवश बन्धन की अवस्था में पड़ जाता है। अज्ञान का अन्त ज्ञान से होता है इसीलिये गीता में मोक्ष पाने के लिये ज्ञान की महत्ता पर प्रकाश डालती है।
गीता के अनुसार ज्ञान के प्रकार –
(1) तार्किक ज्ञान :
वस्तुओं के बाह्य रूप को देखकर उनके स्वरूप की चर्चा बुद्धि के द्वारा करता है। बौद्धिक अथवा तार्किक ज्ञान को ‘विज्ञान’ कहा जाता है। तार्किक ज्ञान में ज्ञाता और ज्ञेय का द्वैत विद्यमान रहता है
(2) आध्यात्मिक ज्ञान :
वस्तुओं के आभास में व्याप्त सत्यता का निरूपण करने का प्रयास करता है। जबकि आध्यात्मिक ज्ञान को ज्ञान कहा जाता है। । आध्यात्मिक ज्ञान में ज्ञाता और ज्ञेय का द्वैत नष्ट हो जाता है। ज्ञान शास्त्रों के अध्ययन से होने वाला आत्मा का ज्ञान है जो व्यक्ति ज्ञान प्राप्त कर लेता है व सब भूतों में आत्मा को और आत्मा में सब भूतों को देखता है। वह विषयों में ईश्वर को और ईश्वर में सब को देखता है। ज्ञान की प्राप्ति के लिये मानव को अभ्यास करना पड़ता है।
श्रीमद भगवत गीता के अनुसार ज्ञान प्राप्त करने की विधि – ज्ञान योग इन भगवद गीता
गीता में ज्ञान को प्राप्त करने के लिये पद्धति का प्रयोग हुआ है-
(1) जो व्यक्ति ज्ञान चाहता है उसे शरीर, मन और इन्द्रियों को शुद्ध रखना पड़ता है।
इन्द्रियाँ और मन स्वभावतः चंचल होते हैं जिसके फलस्वरूप वे विषयों के प्रति आसक्त हो जाते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि मन दूषित होता है, कर्मों के कारण अशुद्ध हो जाता है। यदि मन और इन्द्रियों को शुद्ध नहीं किया जाये तो साधक ईश्वर से मिलने से वंचित हो जाता है। क्योंकि ईश्वर अशुद्ध वस्तुओं को नहीं स्वीकार करता है।
(2) मन और इन्द्रियों को उनके विषयों से हटाकर ईश्वर पर केन्द्रीभूत कर देना भी आवश्यक माना जाता हैं इस क्रिया का फल यह होता है कि मन की चंचलता नष्ट हो जाती है और वह ईश्वर के अनुशीलन में व्यस्त हो जाता है।
(3) जब साधक को ज्ञान हो जाता है तब आत्मा और ईश्वर में तादात्म्य का सम्बन्ध हो जाता है। वह समझने लगता है कि आत्मा ईश्वर का अंग है। इस प्रकार की तादात्म्यता का ज्ञान इस प्रणाली का तीसरा अंग है।
श्रीमद भगवत गीता के अनुसार ज्ञानयोग का सार
गीता में ज्ञान को पुष्ट करने के लिए योगाभ्यास का आदेश दिया जाता है। यद्यपि गीता योग का आदेश देती है फिर भी वह योग के भयानक परिणामों के प्रति जागरूक रहती है। ज्ञान को अपनाने के लिये इन्द्रियों के उन्मूलन का आदेश नहीं दिया गया है। ज्ञान से अमृत की प्राप्ति होती है। कर्मों की अपवित्रता का नाश होता है और व्यक्ति सदा के लिये ईश्वरमय हो जाता है, ज्ञानयोग की महत्ता बताते हुए गीता में कहा गया है, ‘‘जो ज्ञाता है वह हमारे सभी भक्तों में श्रेष्ठ है, जो हमें जानता है वह हमारी आराधना भी करता है।“
आसक्ति से रहित ज्ञान में स्थिर हुए चित्त वाले यज्ञ के लिये आचरण करते हुए सम्पूर्ण कर्म नष्ट हो जाते हैं। इस संसार में ज्ञान के समान पवित्र करने वाला निःसन्देह कुछ भी नहीं है।
4 Comments
Very informative and interesting
aaditi well done… I am interested to know about hindu spirituality but I am not religious ,,,, please share with me ,,, so that understand some good things,,,,,
thanks
hello sir, thank you .. our website is all about of hindu spirituality plz read all post of our site carefully ..thanks to be here
very true line yeshe hi likhte rahe aap 🙂