षटतिला एकादशी – Shattila Ekadashi Vrat 2021
षटतिला एकादशी के दिन भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है। कुछ लोग बैकुण्ठ रूप में भी भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। अपने नाम के अनुरूप यह व्रत तिल से जुड़ा हुआ है। तिल का महत्व तो सर्वव्यापक है और हिन्दू धर्म में तिल बहुत पवित्र माने जाते हैं। विशेषकर पूजा में इनका विशेष महत्व होता है। षटतिला एकादशी पर तिल का विशेष महत्व बताया गया है। इस दिन तिल का 6 प्रकार से उपयोग किया जाता है।
- तिल के जल से स्नान करें
- पिसे हुए तिल का उबटन करें
- तिलों का हवन करें
- तिल मिला हुआ जल पीयें
- तिलों का दान करें
- तिलों की मिठाई और व्यंजन बनाएं
तिल के विशेष महत्व के कारण इसे षटतिला एकादशी व्रत कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन तिलों का दान करने से पापों का नाश होता है और भगवान विष्णु की कृपा से स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है।
षटतिला एकादशी पूजा विधि – Shattila Ekadashi Puja Vidhi
इस दिन विधि पूर्वक भगवान विष्णु का पूजन इस प्रकार करें:
- प्रात:काल स्नान के बाद भगवान विष्णु की पूजा करें और उन्हें पुष्प, धूप आदि अर्पित करें।
- इस दिन व्रत रखने के बाद रात को भगवान विष्णु की आराधना करें, साथ ही रात्रि में जागरण और हवन करें।
- इसके बाद द्वादशी के दिन प्रात:काल उठकर स्नान के बाद भगवान विष्णु को भोग लगाएं और पंडितों को भोजन कराने के बाद स्वयं अन्न ग्रहण करें।
षटतिला एकादशी व्रत मुहूर्त – Shattila Ekadashi Muhurat 2021
- षटतिला एकादशी 7 फरवरी 2021, रविवार को है.
- एकादशी तिथि प्रारम्भ 7 फरवरी 2021, 6.26 A.M.
- एकादशी तिथि समाप्त 8 फरवरी 2021, 4.47 A.M.
- षटतिला एकादशी पारण मुहूर्त – 8 फरवरी 2021 को 7 बज के 5 मिनट से 9 बज 17 मिनट तक है.
षटतिला एकादशी की पौराणिक कथा – Shattila Ekadashi Katha
धार्मिक मान्यता के अनुसार एक समय नारद मुनि भगवान विष्णु के धाम बैकुण्ठ पहुंचे। वहां उन्होंने भगवान विष्णु से षटतिला एकादशी व्रत के महत्व के बारे में पूछा। नारद जी के आग्रह पर भगवान विष्णु ने बताया कि, प्राचीन काल में पृथ्वी पर एक ब्राह्मण की पत्नी रहती थी। उसके पति की मृत्यु हो चुकी थी। वह मेरी अन्नय भक्त थी और श्रद्धा भाव से मेरी पूजा करती थी। एक बार उसने एक महीने तक व्रत रखकर मेरी उपासना की। व्रत के प्रभाव से उसका शरीर तो शुद्ध हो गया परंतु वह कभी ब्राह्मण एवं देवताओं के निमित्त अन्न दान नहीं करती थी, इसलिए मैंने सोचा कि यह स्त्री बैकुण्ठ में रहकर भी अतृप्त रहेगी अत: मैं स्वयं एक दिन उसके पास भिक्षा मांगने गया।
जब मैंने उससे भिक्षा की याचना की तब उसने एक मिट्टी का पिण्ड उठाकर मेरे हाथों पर रख दिया। मैं वह पिण्ड लेकर अपने धाम लौट आया। कुछ समय बाद वह देह त्याग कर मेरे लोक में आ गई। यहां उसे एक कुटिया और आम का पेड़ मिला। खाली कुटिया को देखकर वह घबराकर मेरे पास आई और बोली कि, मैं तो धर्मपरायण हूं फिर मुझे खाली कुटिया क्यों मिली? तब मैंने उसे बताया कि यह अन्नदान नहीं करने तथा मुझे मिट्टी का पिण्ड देने से हुआ है। मैंने फिर उसे बताया कि जब देव कन्याएं आपसे मिलने आएं तब आप अपना द्वार तभी खोलना जब तक वे आपको षटतिला एकादशी के व्रत का विधान न बताएं।
स्त्री ने ऐसा ही किया और जिन विधियों को देवकन्या ने कहा था उस विधि से षटतिला एकादशी का व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उसकी कुटिया अन्न धन से भर गई। इसलिए हे नारद इस बात को सत्य मानों कि, जो व्यक्ति इस एकादशी का व्रत करता है और तिल एवं अन्नदान करता है उसे मुक्ति और वैभव की प्राप्ति होती है।
यह भी पढ़े –
- पापमोचनी एकादशी 2021 – Papmochani Ekadashi Vrat 2021
- जया एकादशी व्रत 2021 – Jaya Ekadashi 2021
- देव उठनी एकादशी 2021- Dev Uthani Ekadashi 2021
- पौष पुत्रदा एकादशी व्रत मुहूर्त 2021 – Paush Putrada Ekadashi 2021